सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
प्रस्तुत है धिप्सु -द्विषत् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 31 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
*520 वां* सार -संक्षेप
*
धोखा देने वालों के शत्रु
धिप्सु =धोखा देने वाला
द्विषत् = शत्रु
हम सेवाभावी, विश्वासयुक्त, शक्तिसम्पन्न बनें राष्ट्रार्पित जीवन का भाव सदा पुलकित रहे इन सदाचार संप्रेषणों का मूल भाव है
अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् ।
शेषाः स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥
( महा० वन० ३१३ । ११६)
जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है फिर भी
इससे बड़ा संसार का आश्चर्य और क्या हो सकता है कि शेष लोग यहां स्थिर रहना चाहते हैं
इस दुनिया में लोग आते जाते हैं लेकिन अपने निकट का जब कोई जाता है तो व्यथा होती है
लेकिन एक अपरिचित चला जाये तो भी यदि व्यथित कर दे तो..
सौ बरस तपस्या की लेकिन वरदान नहीं कोई माँगा,
अर्पित कर दिया मातृभू को जीवन-पट का धागा धागा ।
हे जननी, हे माता-ममता, हे सत्यतीर्थ, हे शुभाशीष,
कर्तव्यमूर्ति, हे अनासक्ति, साकार तपस्या, हे अमीश।
श्रद्धानत पूरी धरती है पुष्पांजलि देता महाकाश,
स्तब्ध महोदधि शान्त पवन मंगलमय पुलकित चिदाकाश।
ये हीराबा, जो अपने पुत्र की तपस्या के कारण नहीं अपनी तपस्या के कारण चर्चित हुईं,के चले जाने पर आचार्य जी के व्यक्त उद्गार हैं
यह धरती श्रद्धा विश्वास की धरती है पुण्यभूमि कर्मभूमि धर्मभूमि भावभूमि सर्वस्व है
इस सर्वस्व के एक अंश के विदा होने पर निकले भाव हैं
आइये चलते हैं मानस में
लंका कांड में आगे
युद्ध का सिद्धान्त है कि शत्रु की धरती पर जाकर युद्ध करें और विजय प्राप्त करें
प्रभु राम ने भी ऐसा ही किया
रावण जो घमंड में चूर है
सो अबहीं बरु जाउ पराई। संजुग बिमुख भएँ न भलाई॥
निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा। देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा॥
अच्छा तो यही है वह शत्रु अभी भाग जाए। युद्धरत होकर पीठ दिखाकर भागने में भलाई नहीं है। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर बैर बढ़ाया है उस शत्रु को मैं जवाब दूंगा
प्रभु राम ने प्रतिज्ञा की कि ऐसे रावण
को लंका में जाकर परास्त करना है
रावण मैदान पर आ चुका है
असगुन अमित होहिं तेहि काला। गनइ न भुज बल गर्ब बिसाला॥
भगवान् राम जो नंगे पांव हैं से अधिक प्रीति करने वाले विभीषण परेशान हैं
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
इस बलवान से कैसे जीत पायेंगे तो प्रभु कहते हैं
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
जिससे जय होती है वह दूसरा ही रथ है यह राम जी का विश्वास है यही रामत्व है