चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।। (७।१६)
प्रस्तुत है दोषज्ञ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 01-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
*521 वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य है कि हमारा आत्मबोध जाग्रत हो हम कौन हैं यह जानें
हमें शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म को आत्मसात् करना होगा
शौर्य रहित अध्यात्म के कारण ही हमारी परिस्थितियां ऐसी हुईं
अब न हों यह ध्यान रखना होगा
भक्तों की याचनाओं के कई प्रकार होते हैं जब कि संसारी व्यक्ति की याचना भौतिक ही होती है
जब हम स्वभाववश,परिस्थिति वश संस्कार वश या आत्मबोध के लिये मन्त्र के जाप,पूजन की क्रियाविधि आदि करते हैं तो अन्त में त्रिविध तापों के शमन के लिये कहते हैं
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
सांसारिक कष्टों की चर्चा और चिन्तन में हम लोग अपना समय व्यतीत कर देते हैं इन सदाचार संप्रेषणों से या अन्य प्रकार से उपलब्ध
अध्यात्मोन्मुखता का यह अभिप्राय कतई नहीं है कि हम संसार त्याग दें
हमें तो संसारत्व त्यागना है
भक्तों के चार प्रकार हैं
बद्ध, मुमुक्षु, केवली और मुक्त
बद्ध - जो इस जीवन की समस्याओं से बँधा है लेकिन ईश्वरोन्मुख रहता है
मुमुक्षु - जिसमें मुक्ति की चेतना जागृत हो किन्तु उसमें लीन नहीं है
भक्त अथवा केवली - जो मात्र ईश्वर की उपासना में ही लीन हो
मुक्त - जो पूर्णरूपेण ईश्वर में समाविष्ट हो जाते हैं
हम लोग बद्ध भक्त हैं
मानस की यहां चर्चा का
यही उद्देश्य है व्यवहार विचार साथ साथ हों
कर्मशीलता जाग्रत करते हुए आइये चलते हैं लंका कांड में
धर्मरथ को समझने का प्रयास करते हैं
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
बद्ध भक्त विभीषण को अपने आश्रय को देखकर मोह हो रहा है जब कि अर्जुन को
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।
मातुलाः श्चशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा।।1.34।।
अपनों को देखकर मोह हुआ था
हमारे पास साधन नहीं हैं उसके पास साधन हैं बद्ध भक्त साधनों में उलझ जाता है
तो भगवान राम कहते हैं जिससे विजय होती है वह दूसरा ही रथ है
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
सौरज (शौर्य )और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील उसकी मजबूत ध्वजा, पताका हैं। सत्य क्रूर नहीं होता l
बल, विवेक, दम और परोपकार- ये चार घोड़े हैं, जो क्षमा, दया,समता रूपी डोरी से रथ में संयुत हैं
ईश्वर प्रेरित व्यवस्था वाले किसी भी काम को नहीं त्यागना यह हमारा उद्देश्य हो
...भीतर से जर्जर हैं ये लोग ये आदर्श स्थापित नहीं कर सकते इसलिये इनका मरना जरूरी है यह भगवान् कृष्ण समझाते हैं अर्जुन को
YouTube (https://youtu.be/YzZRHAHbK1w)