4.12.22

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 4 दिसंबर 2022 का सदाचार संप्रेषण

 रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥

उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥4॥



प्रस्तुत है सवितर्क *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 4 दिसंबर 2022 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  493 वां सार -संक्षेप

* विचारवान्


स्थान :शारदा नगर कानपुर



संसार का स्वभाव है संघर्षों में गिरते लहरते तट पाने की आकांक्षा

संसार है तो समस्याएं रहेंगी ही

उन समस्याओं को स्वयं या

दूसरों के सहयोग से खोजते हुए उनसे निजात पाकर उन्नति के शिखर को प्राप्त करना हमारा लक्ष्य रहता है


कल गीता जयन्ती थी

गीता जयंती मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी तिथि(मोक्षदा )को मनाई जाती है।


गीता यही संदेश देती है कि समस्याओं से जी नहीं चुराना है हमें ललकारों से पलायन नहीं करना है


आइये लंका कांड में प्रवेश करते हैं जिसमें एक और गीता मन्दोदरी -गीता का आचार्य जी विस्तार से वर्णन कर रहे हैं



छत्र मुकुट तांटक तब हते एकहीं बान।

सब कें देखत महि परे मरमु न कोऊ जान॥ 13 (क)॥


अस कौतुक करि राम सर प्रबिसेउ आइ निषंग।

रावन सभा ससंक सब देखि महा रसभंग॥ 13 (ख)॥


यह रंग में भंग देखकर रावण की सारी सभा भयभीत हो गई

लेकिन

मंदोदरी सोच उर बसेऊ। जब ते श्रवनपूर महि खसेऊ॥


मन्दोदरी एक सुविज्ञ नारी है इन्होंने बाद में विभीषण का मार्गदर्शन भी किया है इसीलिये ये पूज्या हैं


अहल्या द्रौपदी तारा कुन्ती मन्दोदरी तथा।

पञ्चकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥[२]



रावण से कहती हैं कि राम जी को मनुष्य समझकर उनसे युद्ध करने की न सोचें

महात्मा तुलसीदास ने यहां भगवान् राम का स्वरूप वर्णित किया यही मन्दोदरी गीता है 


बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥


उत्पत्ति, पालन और प्रलय जिनकी क्रियाएं हैं


प्रभु विश्वमय हैं, अधिक कल्पना  क्या की जाए?


अस बिचारि सुनु प्रानपति प्रभु सन बयरु बिहाइ।

प्रीति करहु रघुबीर पद मम अहिवात न जाइ॥ 15(ख)॥