प्रस्तुत है दीप्ततपस् *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 8 दिसंबर 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
497 वां सार -संक्षेप
* उत्कट भक्ति वाला
व्यक्तिगत विकास के साथ समाज के प्रति सुदृष्टि युगभारती का तात्विक पक्ष है इसी की एक मिसाल भैया विजय दीक्षित जी ने पेश की
जब उनकी समिति से सहायता पाकर एक बच्ची कञ्चन दीक्षित की नौकरी software engineer के रूप में लग गई
यद्यपि इस सांत संसार के अनन्त प्रपंचों में हम फंसे रहते हैं लेकिन उसके बाद भी भारतीय जीवन दर्शन के विविध स्वरूपों से सुपरिचित होते हुए हम समाज को सदाचारी बनाने के साथ साथ स्वयं सदाचरण के मार्ग पर चलने के लिये तैयार हों इसके लिये राष्ट्र के प्रति प्रभु राम के प्रति उत्कट भक्ति वाले आचार्य जी प्रतिदिन हमें इन वेलाओं के माध्यम से प्रेरित उत्साहित करते हैं
भक्ति का आनन्द चिमटा बजाने माला फिराने में नहीं है
वह पौरुष पुरुषार्थ प्रकट करने में है इसी भाव को समाज में जगाने के लिये परमात्मा के संदेशवाहक मार्गदर्शक महापुरुष तुलसीदास जी ने
व्यवहार जगत में बहुत कुछ सिखाने वाली
मानस की रचना कर डाली
आइये चलते हैं इसी मानस के लंका कांड में
प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि।
आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि॥ 20॥
दृढ़ आत्मबल वाले निर्भीक अंगद की बात छली दंभी भौतिकता को सर्वस्व मानने वाले बनावटी भाषा बोलने वाले प्रपंची रावण को समझ में नहीं आती
रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी॥
कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई॥
अब कहु कुसल बालि कहँ अहई। बिहँसि बचन तब अंगद कहई॥
दिन दस गएँ बालि पहिं जाई। बूझेहु कुसल सखा उर लाई॥
अंगद और रावण की वार्ता चल रही है
कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत पर त्रिय चोरी॥
देखी नयन दूत रखवारी। बूड़ि न मरहु धर्म ब्रतधारी
रावण को भय से आक्रांत कर रहा है अंगद
जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन॥
चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई॥