3.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 03-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 रसौ वै सः



प्रस्तुत है महेच्छ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 03-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  523 वां सार -संक्षेप


¹ महत्त्वाकांक्षी


शरीर मन बुद्धि का सामञ्जस्य मनुष्य है और यदि मनुष्य को मनुष्यत्व अर्थात् आत्मबोध की अनुभूति होती रहे तो इसे परमात्मा की बड़ी कृपा समझना चाहिये


आत्मबोध डगमगाने पर मनुष्य को परमात्मा की शरण ही दिखाई देती है


ऐसा मनुष्य आर्त भक्त है

ऐसे आर्त भक्त की पुकार को व्यक्त करती कुछ अपनी रचित पंक्तियां आचार्य जी ने सुनाईं


हे जगत पिता हे जगदीश्वर संसार समन्दर पार करो....


....


तुम ही सर्जक विश्वंभर हो


सर्जन पक्ष और विश्वंभरत्व  ये दोनों जब आत्मस्थ हो जाते हैं तो वह कहता है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्


लेकिन यह कठिन अवस्था है

फिर भी मनुष्यत्व यही है कि इसका हम चिन्तन विचार अवश्य करें यह निराशा नहीं है

हमारा विश्व का भरण करने वाले जगत पिता परमेश्वर के प्रति अनुरक्ति को दर्शाने वाला कर्म है

उत्कर्ष पर पहुंचने वाली अनुरक्ति भक्ति है


भक्त हनुमान जी ने भगवान् राम को जब पहचान लिया तो उनके ज्ञान के नेत्र खुल गये थे


और फिर उन्हें भय भ्रम निराशा नहीं हुई


हनुमान जी चिरजीवी हैं


 भारतवर्ष इसी कारण बचा हुआ है



समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी के समय हनुमान जी की उपासना का आदेश दिया था

 मारीशस गये व्यक्ति मानस का गुटका साथ ले गये थे


हम आर्त भाव से जब हनुमान जी के चरणों में समर्पित होते हैं तो वे कृपा करेंगे ही


आइये चलते हैं लंका कांड में


सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥

ऐसा है धर्मरथ  मनुष्य का जीवन रथ

आत्मबल का प्रयोग उपयोग दोनों हो

परोपकार सर्वकल्याणकारी है


ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥

दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥4॥


ईश्वर का भजन ही  चतुर सारथी है। भाव रम जाये वह भजन है

यह भजन गुरुगोविन्द सिंह चन्द्रशेखर आजाद भगत सिंह ने भी किया है

ये शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म के उदाहरण हैं