अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |l
प्रस्तुत है महारम्भ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 04-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
524 वां सार -संक्षेप
¹ बड़े बड़े कार्यों को हाथ में लेने वाला
ये सदाचार संप्रेषण हमारे अन्दर की सुप्त शक्तियों को जाग्रत करने का प्रयास, भक्ति व भाव की शक्ति को समझने की चेष्टा और उसी शक्ति से अपने सामने आ रही समस्याओं को सुलझाने का उपाय और आज भी बहुआयामी बहुत से दर्शनों को अपनाने वाले धर्म के विस्तार विश्वात्मा भारत की रक्षा में सन्नद्ध महारम्भ हनुमान जी के कार्यों का विस्तार है उन्हीं की कृपा, छाया,योजना है, भारत मां की सेवा में हम जुटें उसका launchpad हैं
स्वयं के काम पर ईमान रखना देशसेवा है,
कि अपने धर्म का सम्मान रखना देशसेवा है,
सदा सद्भाव से सहयोग करना देशसेवा है,
पड़ोसी से मधुर संबंध रखना देशसेवा है,
प्रकृति से प्रेम करना भी अनोखी देशसेवा है,
मितव्ययिता सरलता और शुचिता देशसेवा है,
सहज अक्रोध धीरज और मुदिता देश सेवा है
सुसंगति और सेवा भावना भी देशसेवा है।
डा हेडगेवार भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रारम्भ करने के बाद शुरुआती दिनों में हनुमान जी की मूर्ति के सामने भारतभक्ति आदि की प्रतिज्ञा करवाते थे
आजकल लंका कांड में धर्मरथ का प्रसंग चल रहा है
आचार्य जी ने मानस -पीयूष की चर्चा की
महात्मा श्री अंजनी नन्दन जी शरण द्वारा सम्पादित "मानस-पीयूष" श्रीरामचरितमानस की सबसे बृहत् टीका है। यह ग्रन्थ अनेक रामायणियों,चिन्तकों,विचारकों, कथावाचकों की व्याख्याओं का एक उत्कृष्ट संग्रह है।
जिनका भाव सुदृढ़ होता है उनके अन्दर का विश्वास भी सुनिश्चित हो जाता है यहां विभीषण भ्रमित हैं तभी कहते हैं
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
उस भ्रम को दूर करने के लिये प्रभु राम कहते हैं वह रथ तो दूसरा ही है जिससे विजयश्री मिलेगी
परमात्मा का भजन आवश्यक है राम राम कहने से भगवान् शिव का भजन होना अद्भुत है
सारथि सुजाना हो जैसे ढीले पहिये को सही करने वाली नीतिकुशल त्यागमयी नारी कैकेयी थीं रथी दशरथ के लिये
आचार्य जी ने बर बिग्यान बिरति चर्म संतोष कृपाना आदि की व्याख्या की
इतनी चीजों को रखने वाला सारे शत्रुओं को जीत लेगा