5.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 05-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मीमांसक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 05-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  525 वां सार -संक्षेप


¹ अनुसंधानकर्ता



भावना के साथ की गई प्रार्थना में बल की वृद्धि हो जाती है अपनी भारतीय संस्कृति के  संस्कारों को नई पीढ़ी को संप्रेषित करना हमारा धर्म है

हम भावुक और भावक व्यक्तियों को दिये जा रहे ये संप्रेषण बिना हेतु के नहीं हैं


धरती पर चल रहे भोग काम विकारों पर हमारी पैनी दृष्टि रहे उनसे हम स्वयं तो बचते ही रहें उन पर नियन्त्रण भी रखें

बेचारगी घातक है


संयम नियम ध्यान धारणा प्राणायाम अनिवार्य इसीलिये बताये गये हैं ताकि प्राणों की शक्ति शिथिल न हो और शरीर बोझ न लगे

यम नियम ध्यान धारणा आदि को हमारी शिक्षा से दूर कर दिया गया और वह भोगमयी शिक्षा से बदल दी गई

ऐसी शिक्षा को बदलने के लिये हमें आगे आना होगा 


आइये चलते हैं लंका कांड के

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥

ऐसे 

 धर्मरथ  वाले प्रसंग में


महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।

जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर॥80 क॥


हे धीरबुद्धि वाले सखा!

सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार रूपी   रिपु , क्योंकि हम सार हैं तत्व हैं संसार नहीं, को भी जीत सकता है

 रावण, जिसकी साधना साधनों के लिये थी,

 पर विजय तो बहुत आसान है


मरणशील शरीर धारण किया है तो  कोई व्यक्ति अमर कैसे हो सकता है


यदि व्यक्ति अपने को अजेय (अमर )समझेगा तो सामान्य मनुष्य तो घबराने लगेगा


जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी l


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥



भगवान् राम भी मनुष्य के रूप में आये और उन्होंने रामत्व की अनुभूति करने वाले वनवासी गिरिवासी आदि को संगठित करके अपने को अमर समझने वाले निशाचरों से धरती को मुक्त करने का संकल्प किया


आचार्य जी ने सदाचरण के अंगों का वर्णन करते हुए कथा को आगे बढ़ाया



सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।

एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज॥80 ख


इस धर्मरथ के वर्णन से,रावण के अन्त के बाद लंका में रावणत्व प्रवेश नहीं कर पायेगा, यह विभीषण को सुनिश्चित हो गया



भगवान् राम के पास दुविधाग्रस्त देवताओं ने मातलि सारथि के साथ स्वर्णिम दिव्य रथ को भेजा था

जब कि भगवान राम को तो धर्मरथ पर विश्वास था



युद्ध का वर्णन करते हुए आचार्य जी ने बताया कि रावण पहले दिन का रण हार जाता है