मिलते रहो जुड़ते रहो मुड़कर न देखो आपदा।
संयुत रहो गतियुत रहो लभ शौर्य की शुभ संपदा ।।
प्रस्तुत है सूपसदन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 06-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
526 वां सार -संक्षेप
¹ जिसके पास पहुंचना आसान हो
इन सदाचार संप्रेषणों की स्वीकार्यता इस कारण है कि ये संप्रेषण नित्य हमें सदाचरण के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं, संगठन के महत्त्व को बताते हैं जब सामान्य सी जंगली असंगठित अनगढ़ जनजातियां संगठित होकर इतना बड़ा काम कर सकती हैं तो हम भी ऐसा ही कर सकते हैं
,संसारी भाव के कारण अशुद्ध हुए हम लोगों को शुद्ध करने का सहज स्वभाव का बनाने का प्रयास करते हैं, ये संसार के सत्य को भांपने नापने अपने अन्दर प्रवेश कराने की कुंजी हैं
ये संप्रेषण शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता बताते हैं, ये रावणत्व से दूर रहने और रामत्व को धारण करने का उपाय हैं
ये हमारे ऋषियों चिन्तकों विचारकों मनीषियों दार्शनिकों द्वारा बताई गई सुस्पष्ट जीवनशैली को अपनाने का मार्ग हैं
धर्मरथ साथ हो तो बहुत सारे साधनों की आवश्यकता नहीं रहती
हमारा देश ऐसा है जहां समरांगण में भी सद्गुण सुनाए जाते हैं
मार्गदर्शक कृपालु सब प्रकार के अनुशासनों के देवता शौर्य पराक्रम संयम के प्रतीक हनुमान जी हमें नैराश्य से भय से भ्रम से संकटों से बचाते हैं
आइये चलते हैं लंका कांड में
जय राम जो तृन ते कुलिस कर कुलिस ते कर तृन सही॥
ऐसे भगवान राम के समझाने पर भ्रमित
विभीषण को अब समझ में आ गया है
सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।
एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज॥80 ख
हनुमान जी के माध्यम से राम तक पहुंचने वाले,हनुमान जी के भक्त , कलियुग के वाल्मीकि तुलसीदास जी ने युद्ध का अद्भुत स्वरूप प्रस्तुत किया है
उधर रावण तो इधर अंगद और हनुमान जी हैं
हनुमान जी रावण से
कंपत अकंपन, सुखाय अतिकाय काय, कुंभऊकरन
आदि से किस प्रकार जूझ रहे हैं कवितावली में इसका बहुत सुन्दर वर्णन है
बार-बार सेवक-सराहना करत रामु, 'तुलसी' सराहै रीति साहेब सुजानकी।
लाँबी लूम लसत, लपेटि पटकत भट, देखौ देखौ, लखन! लरनि हनुमानकी॥