7.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 07-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥

तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहिं सत बार महेसू॥3॥


प्रस्तुत है भगवान् हनुमान जी की प्रेरणा से सुकत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 07-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  *527 वां* सार -संक्षेप


¹ भला करने वाला, विद्वान्


भारतीय देवत्व की अनुभूति और परिकल्पना अद्भुत है और सूक्ष्म रूप में सात्विक विचारवान विश्वासी भक्त लोगों में प्रविष्ट रहती है


जब भी इस कलियुग में श्रुति और सिद्धान्त के सारसंक्षेप वाली

भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। जोग चरित्र रहस्य बिभागा॥

जानब तैं सबही कर भेदा। मम प्रसाद नहिं साधन खेदा॥4॥

ऐसे प्रभु राम को जानने का मार्ग बतलाने वाली 

 श्री राम की कथा चलती है सूक्ष्म शरीर में उपस्थित होकर  हम सब  सौभाग्यशाली राष्ट्र भक्तों के प्रेरणास्रोत चिरजीवी हनुमान जी श्रोता और वक्ता दोनों हो जाते हैं

वे भावमय भक्तिमय शक्तिमय हुए कथावाचकों को आनन्द प्रदान करते हैं

इधर कुछ दिनों से इन सदाचार संप्रेषणों में भाव की दक्षिणा विश्वास का प्रसाद वाली संसार में रहते हुए हमारी समस्याओं का हल हमें स्वयं सुलझाने का उपाय बताने वाले रामचरित्र में प्रवृत्त होने का उत्साह देने वाली रामकथा चल रही है

हम इससे शिक्षा ग्रहण करें


आज की शिक्षा जीवनपर्यन्त असंतुष्ट रहने वाली निष्फल व्याकुलता प्रदान करने वाली शिक्षा है जितना शिक्षित उतना असंतुष्ट जितना अशिक्षित उतना संतुष्ट


आइये चलते हैं लंका कांड में


उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान।

लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन॥80 ग॥


भक्त युद्धरत हैं भगवान् राम और लक्ष्मण देख रहे हैं


सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना॥

हमहू उमा रहे तेहिं संगा। देखत राम चरित रन रंगा॥1॥

देवता संदिग्ध हैं भ्रमित हैं लेकिन


प्रस्न उमा कै सहज सुहाई। छल बिहीन सुनि सिव मन भाई॥

से उत्साहित शिव जी जो कथा सुना रहे हैं वे आश्वस्त हैं कि विजय भगवान् राम को ही मिलेगी


भयानक युद्ध चल रहा है

रामादल हावी हो रहा है तो


निज दल बिचलत देखेसि बीस भुजाँ दस चाप।

रथ चढ़ि चलेउ दसानन फिरहु फिरहु करि दाप॥

और जब रावण भारी पड़ने लगा


निज दल बिकल देखि कटि कसि निषंग धनु हाथ।

लछिमन चले क्रुद्ध होइ नाइ राम पद माथ॥ 82॥