वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
प्रस्तुत है भगवान् हनुमान जी
(धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही॥)
की प्रेरणा से सुगन्धि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 08-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
*528 वां* सार -संक्षेप
¹ सद्गुणों से युक्त
अपनी तात्विक बुद्धि से गहन भावों से युक्त इन संप्रेषणों को हम अपने लिये उपादेय बना सकते हैं
ये संप्रेषण हमारी मेधा को परिपुष्ट करते हैं राष्ट्र की सेवा हेतु प्रेरित करते हैं विकारों से दूर करते हैं विचारों से युक्त करते हैं शक्ति बुद्धि शौर्य पराक्रम के साथ समाजोन्मुखी जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं
भारतीय संस्कृति के तात्विक सात्विक यथार्थ चिन्तन को समझने का हौसला देते हैं
शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता बताते हैं
सांसारिक लोक पावन वाली लीला रामकथा के वाचन के पीछे आचार्य जी का उद्देश्य है कि हम पुरोहित उसके मूल आशय को समझें जिसमें छिपा है भारत माता जिसमें रावण अनन्त काल तक जलता रहेगा , सनातनत्व,हिन्दुत्व और शाश्वत समाज का हित
आइये चलते हैं लंका कांड में
युद्ध प्रारम्भ हो गया है
वरदानों के दुरुपयोग वाला देवताओं को असमर्थ करने वाला रावणत्व परमशक्ति के कारण
*जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।*
*करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।*
*तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।*
अब समाप्त होने की कगार पर है
निज दल बिकल देखि
अब लक्ष्मण जी ने मोर्चा संभाल लिया है
रे खल का मारसि कपि भालु। मोहि बिलोकु तोर मैं कालू॥
पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा। स्यंदनु भंजि सारथी मारा॥
सत सत सर मारे दस भाला। गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला॥
रावण के सारथी और रथ नष्ट हो गये
लक्ष्मण जी को पुनः शक्ति लगी लेकिन अब प्रभु राम विलाप नहीं करते
कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता। तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता॥
यह रामत्व है राम आत्मबोध जाग्रत कराते हैं