प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की कृपा से निर्व्यथ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
*533 वां* सार -संक्षेप
¹ ईमानदार
इस समय अनन्त स्वार्थ वाले
हम अद्भुत संसार में रह रहे हैं जहां विचार और विकार दोनों का अस्तित्व है हम विकारों से किस प्रकार दूर हों और तात्विक शक्तिमय विचारों से युक्त हों इसका प्रयास आचार्य जी प्रतिदिन इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से कर रहे हैं
कभी कभी ऐसा होता है हमारे साधन उतने सुदृढ़ नहीं होते जितनी सुदृढ़ता की आवश्यकता हमारी साधना को होती है
हमारी प्राणिक ऊर्जा हमारे शरीर का साधन है और शरीर उस प्राणिक ऊर्जा को अभिव्यक्त करने का साधन है
और प्राणिक ऊर्जा एक महातत्त्व की उत्पत्ति है जो सभी क्रियारूपों को व्यक्त करने के बाद उसी महातत्त्व में विलीन होने को आतुर है
स्वार्थ और लिप्साओं की पूर्ति के लिये अजेय रहने के लिये लोभी साधक रावण ने बहुत बड़ी साधना की
जब कि उसे समझना यह था कि इस मायामय संसार को रचने वाला इस संसार को देखकर जब तक आनन्दानुभूति करता है तो चलाता है अन्यथा अपने में विलीन करता है
रावणी वृत्ति में भोग ही साध्य है अपने अंदर के रावणत्व को दूर करने और रामत्व के दर्शन की आवश्यकता है जिससे हम रामत्व को अपना सकें
इसी रामत्व और रावणत्व को देखने के लिये आइये चलते हैं
उस कृति में जो केवल साहित्यिक ही नहीं
समाज के भयानक भंवर का सेतु है
हम व्याकुलता में गीता और मानस का पाठ करें
मानस के
लंका कांड में
रावण चिल्लाकर बोलता है
खर दूषन बिराध तुम्ह मारा। बधेहु ब्याध इव बालि बिचारा॥
निसिचर निकर सुभट संघारेहु। कुंभकरन घननादहि मारेहु॥3॥
तो भगवान् राम मुस्कुराकर कहते हैं
सत्य सत्य सब तव प्रभुताई। जल्पसि जनि देखाउ मनुसाई॥5॥
जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा।
संसार महँ पूरुष त्रिबिध पाटल (गुलाब )रसाल (आम )पनस (कटहल )समा॥
एक सुमनप्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहीं।
एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं कहत न बागहीं॥
मूर्ख स्वार्थी रावण को ज्ञान की ये बातें अच्छी नहीं लगती क्योंकि वो अपने को ही सबसे अधिक ज्ञानी मानता है
युद्ध चल रहा है तुलसीदास जी ने इसे बहुत विस्तार से लिखा है