उपहास सत्य का जब दर-दर होने लगता
गूंजता गगन में वृत्रासुर का अट्टहास
देवता दीन-दुर्बल हो पन्थ भटकते हैं
तब युग-दधीचि आकर अड़ जाते अनायास
यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का
चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है।।॥१।।
प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की कृपा से निरस्तराग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
*534 वां* सार -संक्षेप
¹ जिसने समस्त सांसारिक अनुरागों का त्याग कर दिया है
यह संसार देवासुर संग्राम राम रावण का समरांगण है
जहां
जिमि जिमि प्रभु हर तासु सिर तिमि होहिं अपार।
सेवत बिषय बिबर्ध जिमि नित नित नूतन मार॥ 92॥
इस संसार में वाल्मीकि व्यास कंबन तुलसीदास विचार हैं और जब हम उनकी कथाओं में प्रवेश करते हैं तो यह व्यवहार है विकारों से मुक्त होने के लिये और विचारों से युक्त होने के लिये ऐसा व्यवहार आवश्यक है
पुराकालीन शिक्षा के कारण हम विश्वगुरु थे
(दुर्बल देशों का जग में कोई सम्मान नहीं होता है)
तब हमारे विचार लोगों के व्यवहार बनते थे धीरे धीरे शक्ति अध्यात्म से दूर हुई शौर्य अध्यात्म इनके अलग अलग विश्लेषणात्मक स्वरूप सामने आये अध्यात्म अकेला हो गया असंसारी पुरुष उस अध्यात्म से आनन्द लेने लगे
संसारी पुरुष उस अध्यात्म का उपयोग नहीं कर पाये इसीलिये कमजोर हो गये
शरीरस्थ लोग प्राणों के मूल्य को नहीं पहचानते मनुष्यत्व से ऐसे लोग दूर रहते हैं इसलिये मनुष्यत्व के उस तत्व का अनुसंधान करें तब देवासुर संग्राम समझ में आयेगा
इसलिये आज का युगधर्म रावणत्वविहीन राम वाली शक्ति उपासना है
*शौर्य प्रमंडित अध्यात्म* अनिवार्य है
राम का प्रभाव यदि अन्दर प्रवेश कर जाता है तो हमारे अन्दर अद्भुत शक्ति आ जाती है इसके प्रति ही समाज को जागरूक करना है यही समाज सेवा है
अद्भुत मानसिक शक्ति से हम भी शक्तिशाली दुष्ट से भिड़ सकते हैं यह रामत्व धारण कर
आइये चलते हैं उस कृति में जिसे चाहे साहित्यिक दृष्टि से पढ़ें या ऐतिहासिक दृष्टि से
लेकिन हमें समझ होनी चाहिये कि उसे किस रूप में पढ़ना है श्रद्धा विश्वास के साथ हमें पढ़ना है
अब हम राम रावण समरांगण में प्रवेश करें
लंका कांड में आगे
दसमुख देखि सिरन्ह कै बाढ़ी। बिसरा मरन भई रिस गाढ़ी॥
गर्जेउ मूढ़ महा अभिमानी। धायउ दसहु सरासन तानी॥
भयानक युद्ध चल रहा है
काटे हुए सिर आकाश मार्ग से दौड़ रहे हैं और जय जय की आवाज करके भय भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं।
पुनि दसकंठ क्रुद्ध होइ छाँड़ी सक्ति प्रचंड।
चली बिभीषन सन्मुख मनहुँ काल कर दंड॥ 93॥
तब दंभी निराश रावण ने क्रोधित होकर प्रचंड शक्ति छोड़ी। वह शंकाशील भक्त विभीषण के सामने ऐसी चली जैसे यमराज का दंड हो
यह घटना वाल्मीकि रामायण में भी है जिसमें दिखाया है कि भगवान् राम ने उस शक्ति को छिन्न भिन्न कर दिया
जब कि मानस में
अत्यंत भयानक शक्ति को आता हुए देख व यह विचार कर कि मेरा प्रण शरणागत के दुःख का नाश करना है, प्रभु ने तुरंत विभीषण को पीछे कर वह शक्ति स्वयं झेल ली।
तो
देखि बिभीषन प्रभु श्रम पायो। गहि कर गदा क्रुद्ध होइ धायो॥
राम बिमुख सठ चहसि संपदा। अस कहि हनेसि माझ उर गदा॥
विभीषण रावण का युद्ध शुरु हो गया