यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।
जो कर्मयोगी फल की इच्छा के बिना जो कुछ मिल जाय, उसमें सन्तुष्ट रहता है और जो ईर्ष्या से रहित, द्वन्द्वों से दूर तथा सिद्धि व असिद्धि में सम है, वह कर्म करते हुए भी उससे नहीं बँधता।
प्रस्तुत है ज्ञानियों में अग्रगण्य हनुमान जी की कृपा से ज्ञान -परु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 15-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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*535 वां* सार -संक्षेप
¹ परुः -समुद्र
यह संसार माया और मायापति का अद्भुत संघर्ष है
अच्छे बुरे का संघर्ष चल रहा है राम रावण का युद्ध हर जगह हर समय चल रहा है
जब माया आच्छादित होती है तो हमें संसार सत्य दिखाई देता है और जितने क्षणों के लिये हम माया से दूर रहते हैं तो संसार असत्य दिखाई देता है
और दिखाई देता है अहं ब्रह्मास्मि
हम शक्ति बुद्धि बल विवेक भक्ति संकल्प चैतन्य अर्जित करें और उसे राष्ट्र के लिये अर्पित करें समाजोन्मुखी जीवन जिएं
निराशा हताशा भय भ्रम कुंठा क्रोध से दूर रहकर हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के विश्वासी और उपासक बनें इसके लिये आइये चलते हैं लंका कांड में
उमा बिभीषनु रावनहि सन्मुख चितव कि काउ।
सो अब भिरत काल ज्यों श्री रघुबीर प्रभाउ॥ 94॥
शिव जी पार्वती जी को संबोधित करते हुए कहते हैं विभीषण जो कभी रावण के सामने आँख उठाकर भी नहीं देख सकता था अब वही काल के समान उससे भिड़ रहा है। यह है श्री रघुवीर का प्रभाव l
श्री राम का प्रभाव जिस जिस के शरीर में समावेशित हो जाता है शरीर को देवालय मानकर परमात्मा जहां स्वयं प्रतिष्ठित हो जाते हैं तो वह अपार बल बुद्धि शक्ति विवेक सम्पन्न हो जाता है
विवेकानन्द, गुरु गोविन्द सिंह, शिवा जी, चन्द्रशेखर आजाद आदि उदाहरण हैं
हम चाह लें तो हम स्वयं भी उस आवेश से आवेशित हो सकते हैं
विभीषण को बहुत ही थका हुआ देखकर हनुमान जी आगे आ गये
रावण के लात पड़ी वह कांपने लगा
भयंकर युद्ध चल रहा है रावण अब भी पराजित नहीं हो रहा है तब
बुधि बल निसिचर परइ न पारयो। तब मारुतसुत प्रभु संभार्यो॥
संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो।