17.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 17-01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।


मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।।



हे पार्थ ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ क्योंकि सभी मनुष्य  मेरे मार्ग का अनुकरण करते हैं।



प्रस्तुत है चिरजीवी हनुमान जी की कृपा से धीरचेतस् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17-01- 2023 

 का  सदाचार संप्रेषण 


 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

  *537 वां* सार -संक्षेप


¹ साहसी


यह संप्रेषण हमारा मार्गदर्शन करता है ताकि समस्याएं आने पर हम घबराएं नहीं और उनका डटकर सामना करें हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें 

यह सत्य है कि


काव्य शास्त्र विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्।

व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रयाकलहेन वा। ।


मनुष्य का अपनापन जब विस्तार ले लेता है जो पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानता है तो यह अपनापन उसे मनुष्यत्व की अनुभूति कराने लगता है


संस्कार युक्त विचार  व्यवहार 

भारतवर्ष का वैशिष्ट्य है उसका आत्मस्वरूप है


उसकी 

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः


समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति।

की तरह की क्षमता जब तक उसकी रही समृद्ध रूप से वह वसुधैव कुटुम्बकम् के स्वरूप को संसार के सामने प्रस्तुत कर सका


लेकिन जब जब उसका सत् स्वरूप विकृत हुआ यानि

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

तब तब

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।


और फिर उसका सत् स्वरूप संसार के सामने प्रकट हो जाता है

अद्भुत प्रतिभासम्पन्न तुलसीदास जी की रामकथा भारतवर्ष की आत्माभिव्यक्ति है

एक उदाहरण 

माल्यवान रावण को पहले विकृत करता है फिर सुधारता है

गौर करें तो ऐसी परिस्थितियां हमारे सामने भी आती हैं

रामकथा तब भी चल रही थी आज भी चल रही है 

मनुष्य रूप में लीला करने वाले भगवान् राम में सरलता शौर्य  

शक्ति तत्व भक्ति भाव विचार आदि सब कुछ है

आइये उस रामत्व को धारण कर, जो रावण को पराजित करेगा ही, चलते हैं लंका कांड में



अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें॥

सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल॥3॥


देवताओं को प्रभु राम की स्तुति करते हुए देख  रावण ने सोचा, मैं इनकी समझ में एक हो गया, किंतु इन्हें यह पता ही नहीं कि इनके लिए मैं एक ही बहुत हूँ और कहा- अरे मूर्खों! तुम तो सदा मेरी मार खाने वाले हो। ऐसा कहकर वह देवताओं की ओर दौड़ा


आज से तुलना करें भीड़ आज इनके पीछे कल उनके पीछे

जैसे देवता कभी रावण की स्तुति कर रहे हैं कभी राम की

हमें भीड़ नहीं संगठन बनाना है



देखि बिकल सुर अंगद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो॥4॥

देवताओं की व्याकुलता देख शक्ति के साथ सौम्य स्वभाव रखने वाले अंगद ने रावण को पटका और राम जी की शरण में चले गये


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