प्रस्तुत है राम काज करिबे को आतुर हनुमान जी की कृपा से जितारि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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538 वां सार -संक्षेप
¹ जिसने अपने शत्रुओं / विकारों पर विजय प्राप्त कर ली है
स्थान :उन्नाव
आज कल हम लोग राम चरित मानस
(गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था।) के लंका कांड में प्रविष्ट हैं
हाहाकार करत सुर भागे। खलहु जाहु कहँ मोरें आगे॥
ऐसे रावण ने अपना दबदबा कायम करने के लिये तपस्या द्वारा बहुत सारी शक्ति अर्जित कर ली थी लेकिन उसे असुर कहा जायेगा
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।17.5।।
कर्षयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः।
मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान्।।17.6।।
जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित घोर तप करते हैं जो दम्भ और अहङ्कार से अच्छी तरह युक्त हैं जो भोगपदार्थ, आसक्ति और हठ से युक्त हैं
जो शरीर में स्थित पाँच भूतों को तथा अन्तःकरण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कष्ट देते हैं
उन अज्ञानियों को तू असुर समझ
राम रावण युद्ध हमारे अन्दर तो चलता ही है बाहर भी चला करता है
रावण देवताओं की ओर दौड़ा
देखि बिकल सुर अंगद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो॥4॥
अंगद भी तपस्वी है उसने रावण को पटक दिया
और भगवान् राम के पास चला गया
रावण फिर अपना बल दिखाने लगा
तब रघुपति रावन के सीस भुजा सर चाप।
काटे बहुत बढ़े पुनि जिमि तीरथ कर पाप॥97॥
श्रीराम जी ने रावण के सिर, भुजाएँ, बाण और धनुष काट डाले। पर वे फिर बहुत बढ़ गए, जैसे तीर्थ में किए हुए पाप बढ़ जाते हैं
(युगभारती भी एक पवित्र तीर्थ है और जब हम इससे जुड़ें हैं तो खान पान सही रखें और अन्य
विकारों से बचने का प्रयास करें
रामत्व जहां विकसित होता है वहां उत्साह बढ़ता है
भ्रम भय रावणत्व से आता है
युगभारती के सदस्य आपस में संपर्क करते रहें आत्मीयता में कमी न आये
हमारे अन्दर की सात्विकता विकसित हो और ज्ञान का संस्पर्श करे लोक व्यवहार परिवार व्यवहार परमात्मतत्व का ज्ञान मिलजुलकर मनुष्यत्व है इन्द्रियातीत कर्म सदैव याद रहता है
)
युद्ध जारी है
हनुमदादि मुरुछित करि बंदर। पाइ प्रदोष हरष दसकंधर॥
मुरुछित देखि सकल कपि बीरा। जामवंत धायउ रनधीरा॥
जामवंत अतुलित बलशाली है ये रावण के बाबा के समय के हैं
लेकिन वृद्धावस्था में भी उनमें आवेश की कमी नहीं आई भीष्म भी इसी तरह के उदाहरण हैं
योगविद्या में यह सुस्पष्ट है कि आयु को भी जीता जा सकता है
जाम्बवान ने अपने दल का विध्वंस देखकर क्रोध करके रावण की छाती में लात मारी।