एकनिष्ठ सेवक हूँ मैं , यही मोक्ष मेरा , आ रहा हूँ पीछे तेरे , तू ही ध्येय तारा
प्रस्तुत है हनुमान जी की कृपा से दुराशय -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20-01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
540 वां सार -संक्षेप
¹दुराशय =कुत्सित विचारों वाला व्यक्ति
सुख दुःख की अनुभूतियों से मुक्त होकर
भाव विचार कार्य को एक सम पर पहुंचाने का प्रयास करने के लिये और
सद्विचारों को ग्रहण करने हेतु आइये प्रवेश करते हैं इस सदाचार वेला में
जो मनुष्य भोग और ऐश्वर्य में अत्यधिक आसक्त हैं, उनकी परमात्मा में व्यवसायात्मिका बुद्धि नहीं होती
गीता के दूसरे अध्याय में
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयतेll
का यह अर्थ है
वेद तीनों गुणों के कार्य को वर्णित करते हैं
हे अर्जुन! तुम त्रिगुण से रहित, निर्द्वन्द्व, निरन्तर नित्य परमात्मा में स्थित हो जाओ , योगक्षेम की इच्छा भी मत रखो और परमात्मपरायण हो जाओ
वेदों और शास्त्रों को तत्त्व से जानने वाले ज्ञानी का सम्पूर्ण वेदों में कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता।
अतः
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
और आसक्ति को त्याग , सिद्धि असिद्धि में समभाव योग में स्थित होकर तुम अर्जुन कर्म करो।
फल की इच्छा करने वाले दीन हैं
समत्वबुद्धि से युक्त मनुष्य जीते जी पुण्य पाप त्याग देता है। अतः तुम योग में लग जाओ क्योंकि योग ही कर्मों में कुशलता है।
आइये चलते हैं लंका कांड में
मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा सन बोली तब सीता॥
होइहि कहा कहसि किन माता। केहि बिधि मरिहि बिस्व दुःखदाता॥
मोर अभाग्य जिआवत ओही। जेहिं हौं हरि पद कमल बिछोही l कहने वाली
माया की सीता चिन्तित हैं कि सारे विश्व को दुःख देने वाला कैसे मरेगा
प्रभु ताते उर हतइ न तेही। एहि के हृदयँ बसति बैदेही॥
परंतु प्रभु बाण इसलिए नहीं मारते कि रावण के हृदय में सीता बसती हैं
त्रिजटा संदेह दूर करती है
अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा॥
युद्ध जारी है
राम जी विभीषण की परीक्षा ले रहे हैं कि वो ईश्वरत्व में प्रवेश कर गये हैं या अभी भी उनके अन्दर संसारत्व और ईश्वरत्व का घालमेल है
तब
नाभिकुंड पियूष बस याकें। नाथ जिअत रावनु बल ताकें॥
सुनत बिभीषन बचन कृपाला। हरषि गहे कर बान कराला॥
इसके नाभिकुंड में अमृत है। हे प्रभु ! यह उसी के बल पर जीवित है। विभीषण के वचन सुनते ही भगवान् ने हर्षित होकर हाथ में विकराल बाण लिए.....