एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति
(ऋग्वेद 1:64:46)
प्रस्तुत है हनुमान जी की कृपा से सुजन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 21 -01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
541 वां सार -संक्षेप
¹सद्गुणी
आज मौनी अमावस्या है । इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता है यदि यह संभव न हो तो आज कम से कम वह कटु वचन न बोले
विरक्ति का भाव रखने वाला व्यक्ति संसार को उसी तरह देखता है जैसे तट पर स्थित व्यक्ति समुद्र को देखता है
गीता मानस जीवन के संघर्षों में हमें विजय की प्रेरणा देते हैं
श्रीमद्भगवद्गीता (स्मृतिप्रस्थान ), ब्रह्मसूत्र (न्यायप्रस्थान )तथा उपनिषदों (श्रुतिप्रस्थान )को प्रस्थानत्रयी कहा जाता है
परमात्मा ने जीवन को क्यों संघर्षमय बनाया ब्रह्मसूत्र में इसका विस्तार से वर्णन है
चिन्तन संयम भक्ति शौर्य स्वाध्याय का सामञ्जस्य हम लोग करें रामत्व का अनुभव करें
इन संकेतों के पीछे आचार्य जी का आशय रहता है कि स्वाध्याय की ओर हमारी जिज्ञासा बढ़े
गीता में
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।।..
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।2.65।।
विषयों के चिन्तन से मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना, कामना से क्रोध, क्रोध से मूढ़भाव जिससे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि का नाश हो जाता है फिर मनुष्य का पतन हो जाता है।
वशीभूत अन्तःकरण वाला साधक रागद्वेष से रहित अपने वश में करी इन्द्रियों से विषयों का सेवन करता हुआ अन्तःकरण की निर्मलता को पाता है। निर्मलता पाने पर साधक के सारे दुःखों का नाश हो जाता है और ऐसे शुद्ध चित्त वाले की बुद्धि बिना सन्देह जल्दी ही परमात्मा में स्थिर हो जाती है।
बुद्धि की अस्थिरता इधर उधर भटकाती रहती है
इसको स्थिर करने का मूलमन्त्र अपार शक्ति है एकात्म मानववाद इसी से प्रेरित है और अद्वैत का मूल है
आइये चलते हैं राम (विचार )रावण (विकार )युद्ध में
लंका कांड में
देखि महा मर्कट प्रबल रावन कीन्ह बिचार।
अंतरहित होइ निमिष महुँ कृत माया बिस्तार॥
विकार अन्त तक संघर्ष करता है
रावण ने रामादल को व्याकुल कर दिया
रावण की माया देखिये
उसने बहुत से हनुमान प्रकट किए, जो पत्थर लिए दौड़े। उन्होंने चारों ओर दल बनाकर श्री राम को जा घेरा
फिर
रघुबीर एकहिं तीर कोपि निमेष महुँ माया हरी॥1॥
भगवान् भगवान् हैं हम भगवान् हैं यह दम्भ नहीं करना चाहिये अंश अंशी बनने का जब दम्भ करता है तो रावणत्व प्रवेश कर जाता है हमें इसकी अनुभूति तो होनी चाहिये लेकिन अभिव्यक्ति नहीं
युद्ध चल रहा है फिर
खैंचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस।
रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस॥ 102॥
यह अन्तिम प्रहार है राम जी का
पूरे भारत में फैले रावणत्व को समाप्त करने का मौका था और इसके बाद रामराज्य की स्थापना हुई