यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।
प्रस्तुत है अधिश्री ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 22 -01- 2023
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
542 वां सार -संक्षेप
¹ऊंची प्रतिष्ठा वाला
श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं।
सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं॥2॥
भगवान् श्रीराम और रावण के बीच युद्ध का चरित्र यदि सैकड़ों शेष, सरस्वती, वेद एवं कवि अनेक कल्पों तक गाते रहें तब भी उसका पार नहीं पा सकते
सत् प्रवृत्तियों और दुष्प्रवृत्तियों में संघर्ष आज भी चल रहा है अशान्ति अनिश्चय का बोलबाला है
हमारे अतुलनीय साहित्य के चर्चित चर्वित और वर्णित विषयों का अध्ययन कर इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमें सन्मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करते हैं ताकि अशान्ति में रहते हुए भी हम शान्ति की अनुभूति कर सकें, अनिश्चय के वातावरण में भी निश्चय का संकल्प कर सकें,आजीवन हमारे कामना से रहित प्रयास हों जैसे भगवान् राम सब कर्म करते हैं लेकिन उनमें लिप्त नहीं होते (यह भी रामत्व है ),हम सद्ग्रन्थों में रुचि लें, गहनता का अनुभव करें, समस्याओं का हल स्वयं निकाल सकें, हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें और हम
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥
भगवान् राम की तरह प्रण लें
और
खैंचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस।
रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस॥ 102॥
हम प्रवेश कर चुके हैं लंका कांड में
रावण की नाभि में अमृत था उसको सोखने का समय आ गया था
(राम बिमुख अस हाल तुम्हारा। रहा न कोउ कुल रोवनिहारा॥)
सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा॥
लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा॥
अद्भुत है प्रभु की लीला
रावण मारा गया तमस विलीन हो गया यही संसार का तत्वबोध है
पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी॥
जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आईं