मिलते रहो जुड़ते रहो मुड़कर न देखो आपदा।
संयुत रहो गतियुत रहो लभ शौर्य की शुभ संपदा ।।
प्रस्तुत है सुकल ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 24 -01- 2023
( हम शक्ति शौर्य संकल्प पराक्रम से अभिमंत्रित हों,
आवेग अपार धार कर अपने आप नियंत्रित हों। )
का सदाचार संप्रेषण
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544 वां सार -संक्षेप
¹ उदारता से धन देने और सदुपयोग करने में जिस व्यक्ति ने कीर्ति अर्जित कर ली हो
इन संप्रेषणों से हमें कितना लाभ हुआ कितनी ऊर्जा मिली और उस ऊर्जा का कितना सदुपयोग किया इसकी आत्मसमीक्षा अवश्य करें अहं ब्रह्मास्मि यह अनुभूति आनन्दमय होती है और इसका अभ्यास मोक्षदायी होता है
यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।
जो व्यक्ति, अपने आप जो कुछ मिल जाय, उसमें सन्तुष्ट रहता है और वह भी बिना परिणाम की इच्छा के
और जो व्यक्ति ईर्ष्या से रहित, द्वन्द्वों से दूर तथा सिद्धि असिद्धि में सम है, वह कर्म ( यज्ञायाचरतः कर्म अर्थात् यज्ञ के लिये किया गया कर्म )करते हुए भी उससे बँधता नहीं
चंचल वृत्ति के व्यक्ति एकरसता से ऊबते हैं जब कि शान्त मन वाले संयम के अभ्यस्त व्यक्ति आनन्दित होते हैं
श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं।
सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं॥2॥
जैसा यह राम रावण युद्ध ब्रह्माण्ड में हुआ वैसा अनन्त काल से इस शरीर में भी चल रहा है
रावण मोह है , आदर्श राम ज्ञान, सीता भक्ति, हनुमान वैराग्य, कुम्भकर्ण अहंकार, विभीषण विकार विचार से संयुत जीव वानरी सेना पार जाने का साधन और प्रवृत्ति लंका दुर्ग है
ब्रह्म द्वारा मोह कटता है और फिर निकलता है ज्ञान ढका जा सकता है समाप्त नहीं होता
मोह समाप्त होने पर रामराज्य की स्थापना होती है
अज्ञानियों के प्रति सजग सचेत रहें उनमें लिप्त न हों क्योंकि यह उनकी अज्ञानता ही है कि वे रामचरित मानस को समाज में नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बताते हैं उनकी प्रकृति और प्रवृत्ति दोनों दूषित है
जब कि मानस ने समाज को एकजुट करने का काम किया
मानस आनन्द प्रदान करता है
व्याकुलता समाप्त करता है
आचार्य जी ने विनयपत्रिका की भी चर्चा की
देहि अवलंब कर कमल, कमलारमन, दमन - दुख, शमन - संताप भारी ।
अज्ञान - राकेश - ग्रासन विधुंतुद, गर्व - काम - करिमत्त - हरि, दूषणारी ॥१॥
वपुष ब्रह्माण्ड सुप्रवृत्ति लंका - दुर्ग, रचित मन दनुज मय - रुपधारी ।
विविध कोशौघ, अति रुचिर - मंदिर - निकर, सत्त्वगुण प्रमुख त्रैकटककारी ॥२॥
और इसकी व्याख्या की
इसके अतिरिक्त आजकल के किन चर्चित विषयों की ओर आचार्य जी ने संकेत किया जानने के लिये सुनें