नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥
बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ॥
प्रस्तुत है आक्रन्दिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 25 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण
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545 वां सार -संक्षेप
¹ ऐसा व्यक्ति जो किसी दुःखी जन के विलाप को सुनकर तुरन्त उसके पास जाता है
को छूट्यौ इहिं जाल परि कत कुरंग अकुलात।
ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात॥- बिहारी
कुरंग = हिरन
इस जाल अर्थात् संसार में फंसने के बाद कौन छूटा? तो हे कुरंग अर्थात् जीव ! तुम क्यों अकुलाते हो ?
जैसे जैसे सुलझकर भागना चाहते हो , वैसे वैसे इस उछल-कूद से उलझते जाते हो (दलदल में फंसे तो लेटने के लिये कहा जाता है )
यह शरीर भी संसार है इसे चलाने के लिये प्राणिक शक्ति रूपी आध्यात्मिक ऊर्जा की जितनी देर अनुभूति होती है उतनी देर किसी तेजस का प्रवाह चलने लगता है सारी सृष्टि स्रष्टा ने व्यर्थ में नहीं रची है यह विषय प्रस्थानत्रयी में विशेष रूप से वर्णित है
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।
ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है
अध्यात्ममय जीवन से समझ में आता है कि जो घट रहा है सब उस स्रष्टा की लीला है
देवता अध्यात्म की ओर उन्मुख करने में सहायता भी करते हैं और सांसारिक प्रपंचों में भी ढकेलते हैं
राम रावण युद्ध लगातार चल रहा है
हिन्दू राष्ट्र हमारा उपास्य है हम दैवीय शक्ति के उपासक हैं आसुरी शक्तियों से हमारा मुकाबला हो रहा है हमारी उपासना जीवन भर चलेगी
मानस और गीता का आधार लेकर हम समाजोन्मुखी जीवन जीने के लिये प्रवृत्त हों
इन संप्रेषणों का प्रभाव हमारे ऊपर कितना पड़ा इसका आकलन करें
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मन्दोदरी जिनका शरीर राक्षस का है लेकिन मन तत्त्व में समाया है कहती हैं
जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं।
जेहि नमत सिव ब्रह्मादि सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं॥
आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं।
तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं॥
राक्षस रूपी जंगल को जलाने के लिए साक्षात् हरि को तुमने मनुष्य मान लिया शिव आदि भी जिनको नमस्कार करते हैं
तुम्हारा यह शरीर जन्म से ही दूसरों से द्रोह करने में लगा रहा!
(जैसे
दैवीय शक्ति के उपासक बागेश्वर धाम वाले बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के ईर्ष्यावश पीछे पड़े हैं
प्रतापगढ़ जिले के ब्राह्मणपुर गांव में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (उमाशंकर पांडेय ) )
इतने पर भी जिन निर्विकार ब्रह्म राम ने तुमको अपना धाम दिया, उनको मैं नमस्कार करती हूँ।