बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ॥
प्रस्तुत है प्राप्तकारिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 26 -01- 2023
74 वां गणतन्त्र दिवस /वसन्त पंचमी का सदाचार संप्रेषण
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546 वां सार -संक्षेप
¹ सही कार्य करने वाला
वर्तमान कालगणना के अत्यन्त उच्च कोटि के अद्भुत अद्वितीय व्यापक प्रसार वाले विचार विमर्श का आदिक्षेत्र अपना भारत देश है
लेकिन हमने अपनी मानसिक विकृतियों के कारण आत्मबोध विस्मृत कर परधर्म ग्रहण कर लिया
जब कि
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
धर्म ज्ञान और व्यवहार का समन्वित स्वरूप है धर्म कर्तव्य है धर्म में मनुष्यत्व का बोध है
आचार्य जी इन संप्रेषणों से हमारा आत्मबोध जाग्रत करने का प्रयास करते हैं ताकि हम जान सकें कि हमारा धर्म ही श्रेष्ठ है हमारे पास संपूर्ण विश्व का कल्याण करने वाले साहित्य का अद्भुत भंडार है
शौर्य प्रमंडित अध्यात्म हमारे लिये आज की आवश्यकता है
हमें स्वयं भी इसी तरह के जागरण का प्रयास करना चाहिये क्योंकि हम जानते हैं
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।4.40।।
(पतन को प्राप्त विवेकहीन और श्रद्धारहित संशय वाले मनुष्य के लिये न यह लोक है न परलोक है और न सुख ही है )
इन्द्रियों को संयमित करके अत्यधिक अनुरक्ति के साथ साहित्य के उसी अद्भुत भंडार के एक ग्रंथ श्रीराम चरित मानस को पढ़कर आत्मजागृति संभव है
ऐसे लोगों का संगठन हम लोग बनायें जिन्होंने अपना आत्म जाग्रत कर लिया है ताकि हम राष्ट्रद्रोहियों दुष्टों आदि पर अपना प्रभाव डाल सकें
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
आइये चलते हैं लंका कांड में
तासु तेज समान प्रभु आनन।
रावण मर चुका है मन्दोदरी व्याकुल है
जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आईं॥
लेकिन विदुषी मन्दोदरी ज्ञान और चिन्तन में प्रवेश कर गई है
काल बिबस पति कहा न माना। अग जग नाथु मनुज करि जाना॥
विभीषण जो कि एक जीव हैं
बंधु दसा बिलोकि दुःख कीन्हा। तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा॥
लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायो। (अब विभीषण को राज्य करना है उसे कमजोरी त्यागनी है )बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो॥
विभीषण का राजतिलक हो गया
भगवान् राम ने सभी सहायता करने वालों का धन्यवाद दिया
तब रघुबीर बोलि कपि लीन्हे। कहि प्रिय बचन सुखी सब कीन्हे