28.1.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 28 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो॥4॥


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।



प्रस्तुत है चामीकरप्रख्य   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 28 -01- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *548 वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं इनको सुनने के लिये हमें अपने समय का समायोजन अवश्य करना चाहिये क्यों कि ये हमें सात्विकता की ओर उन्मुख करते हैं 


श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥

उपासना और उपास्य की लीला अद्भुत है

रामकथा हमें आनन्द तो देती ही है यह परिस्थितियों के आने पर शौर्य शक्ति का प्रदर्शन करने के लिये भी है


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥



हम कितने भी ज्ञानी हों लेकिन संसार का गुढ़ रहस्य समझना बहुत कठिन है

जब हम उस तत्त्व को जान लेते हैं तो


अंश आत्मा अंशी परमात्मा में लीन होकर अपना अस्तित्व मिटा देता है


*हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।* 


*बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥*

 अद्भुत है इस संसार का स्वरूप और स्वभाव


आइये चलते हैं लंका कांड में

भगवान् राम ने सहायता करने के लिये सभी को धन्यवाद दिया तो पूरा सैन्य समूह भावमय हो गया भावुकता जितनी अधिक प्रवेश करती है उसमें उतनी शक्ति और भक्ति भी प्रविष्ट हो जाती है


पुनि प्रभु


(जिन्होंने पहले भी कहा था 

कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥4॥)


 बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना॥

समाचार जानकिहि

(लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥)


 सुनावहु। तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु॥

आचार्य जी ने इस प्रसंग की विस्तृत व्याख्या की 

ऋषि द्रष्टा वाल्मीकि जी ने  भी इस प्रसंग का उल्लेख किया है


वैराग्य के प्रतीक हनुमान जी ही भगवान् राम में ध्यानस्थ सीता जी का ध्यान हटा सकते हैं



तब हनुमंत नगर महुँ आए। सुनि निसिचरीं निसाचर धाए॥

बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही। जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही॥


हनुमान जी ने दूर से प्रणाम किया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज भैया प्रदीप का  नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें