श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥
प्रस्तुत है गीर्पति ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 29 -01- 2023 का सदाचार संप्रेषण
(मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥
सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥3॥
कीरति =कीर्ति, भूति =ऐश्वर्य)
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*549 वां* सार -संक्षेप
¹ विद्वान् पुरुष (गीष्पति भी )
इन संप्रेषणों को सुनते समय हम संसारेतर भाव में रहते हैं
ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5.3।।
किसी से द्वेष न रखने वाला और न किसी की आकांक्षा करने वाला पुरुष सदैव संन्यासी ही समझा जाये क्योंकि द्वन्द्वों से दूर पुरुष बड़ी आसानी से बन्धन मुक्त हो जाता है।।
एक सहज अवस्था लगती है कि कर्म फल की न इच्छा की जाये न कर्म फल से घृणा की जाये
लेकिन है कठिन
सुख-दुख के इक परे परम सुख तेहि में रहा समाई
उलझनों में हमें गीता मानस का सहारा लेना चाहिये हम लेखन -योग भी कर सकते हैं
अपने उद्देश्य को बड़े से बड़ा बनायें राम राज्य की परिकल्पना करें और उसके लिये सन्नद्ध हों भावों को गहरा रखें प्रतिभा निखारें
पावन मेरा देश भावन मेरा देश
( *अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं* से, प्रथम कविता ) को उद्धृत करते हुए आचार्य जी कहते हैं कि हम अपने अस्तित्व की अनुभूति करते हुए अपनी मेधा जाग्रत करें
हम राष्ट्र की सेवा में रत हों
और अनुवर्तन प्रत्यावर्तन पर विचार करें
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं।
हमारी जन्मभूमि थी यही, कहीं से हम आए थे नहीं।
..
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान।
जिएँ तो सदा उसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष।
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।
आइये चलते हैं लंका कांड में
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥
इस तरह ध्यान मग्न मां सीता को हनुमान जी विजय की सूचना दे देते हैं
सब बिधि कुसल कोसलाधीसा। मातु समर जीत्यो दससीसा॥
मां सीता को समझ में नहीं आ रहा कि हनुमान जी को इस उत्तम समाचार के लिये क्या दें
निस्पृह वैरागी हनुमान जी को तो आत्मीयता श्रद्धा विश्वास प्रेम ही चाहिये
सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं।
रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं॥
हनुमान जी तो भगवान् राम की और सेवा करना चाहते हैं
भगवान् राम जब अपनी मानव लीला बन्द करना चाहते हैं तो भी मातृभूमि अयोध्या सूनी न रहे हनुमान जी को रुकने का आदेश देते हैं
आज भी, में वो विराजमान हैं