3.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 03-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 शुद्धोसि बुद्धोसि निरञ्जनोऽसि संसारमाया परिवर्जितोऽसि


संसारस्वप्नं त्यज मोहनिद्रां मदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्।



प्रस्तुत है पृथुकीर्ति ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 03-02- 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  *554 वां* सार -संक्षेप

1 दूर दूर तक विख्यात


स्थान :कानपुर



प्रातःकाल की यह वेला संसारेतर चिन्तन के लिये है

वैसे तो दिनभर हमारे साथ संसार लगा ही रहता है हमें इस वेला का सदुपयोग करना चाहिये हमें मनुष्य का जीवन मिला है इसकी अद्भुतता को पहचानें 

रुचि श्रद्धा विश्वास समर्पण संयम के साथ हम आचार्य जी से अधिक से अधिक ग्रहण करें और स्वयं भी अगली पीढ़ी को देने के लिये माध्यम बनें

मन को संयत करना मन को अनुकूल बनाना मनुष्य की साधना का एक महत्त्वपूर्ण अंग है 

क्योंकि 

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।


तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।


यह मन बड़ा  चंचल, प्रमथन स्वभाव के साथ बलवान् और दृढ़ है

 उसका निग्रह करना  वायु के समान अति दुष्कर है ।।

भारत विश्व का हृदयस्थल है साधना के लिये यह सबसे उपयुक्त स्थान है हमारी सांस्कृतिक परम्परा बहुत गहरी मजबूत और विचारपूर्ण है हमारा लक्ष्य है भारत वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाये भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित कर सकता है 

आत्मस्थ होकर अपने अस्तित्व को पहचानकर व्यक्तित्व को विकसित करने के लिये समाज के साथ सामञ्जस्य बैठाना कौशल का काम है

ध्यान आत्मस्थता का प्रारम्भिक प्रयोग है 


साधना के वैशिष्ट्य को हम समझते हुए उचित खानपान की ओर ध्यान दें  वाणी व्यवहार में नियन्त्रण रखें प्रातः जल्दी जागें विकारों को दूर करने का प्रयास करें सद्विचारों को ग्रहण करते चलें व्याकुलता से दूर रहें सतर्क सचेत रहें

क्षुद्र स्वार्थ लोभ को दरकिनार करते हुए संगठन का महत्त्व समझते हुए हम संगठित होकर बहुत कुछ कर सकते हैं एक दूसरे से संपर्क में रहें 

अपने विचार प्रकट कर समाज को जाग्रत करें