सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।
मैं सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में हूँ। मेरे द्वारा ही स्मृति, ज्ञान और अपोह ( तर्कशक्ति के द्वारा संशय आदि का निवारण ) होता है। सारे वेदों के द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ। वेदों के तत्त्व का निर्णय करने वाला एवं वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ।
प्रस्तुत है पटुकरण ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 05-02- 2023
(माघ पूर्णिमा )का सदाचार संप्रेषण
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556 वां सार -संक्षेप
1 जिसके अंग स्वस्थ हैं
हमारे सनातन धर्म का चिन्तन है कि परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है वह ही प्रत्येक जीव का प्राण तत्त्व है
इस चिन्तन के आधार पर श्रद्धा विश्वास करते हुए भारतवर्ष
(मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव ।
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥)
के अनेक कवियों मनीषियों चिन्तकों विचारकों वीर योद्धाओं ने अपने अद्भुत भाव क्रिया व्यापार व्यक्त किये हैं
इस चिन्तन पर श्रद्धा विश्वास भक्ति रखते हुए अपने शरीर को मात्र एक साधन मानते हुए सुख दुःख में समान भाव रखते हुए
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।...
हम यदि राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण (यह भी रामत्व है क्यों कि भगवान् राम को स्वर्णमयी लंका नहीं भाई थी
अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥)
समाजोन्मुखी जीवन जीने का प्रयास करेंगे तो हमारी आनन्द -सरिता क्षीण नहीं होगी
आइये प्रवेश करते हैं उन्हीं राम की कथा में
लंका कांड में आगे
बिनय कीन्ह चतुरानन प्रेम पुलक अति गात।
सोभासिंधु बिलोकत लोचन नहीं अघात।।111।।
रणक्षेत्र में सिंहासन पर युगलमूर्ति विराजमान है यहीं पुष्पक विमान आयेगा यहीं से अपनी मातृभूमि के लिये प्रस्थान भी होगा
तभी दिव्य शरीर धारण कर दशरथ जी वहाँ आए।
तात सकल तव पुन्य प्रभाऊ जीत्यों अजय निसाचर राऊ कहने वाले
राम जी को देखकर उनके नेत्र भीग गये अनुज सहित राम जी ने उनकी वंदना की तब पिता से उनको आशीर्वाद मिला
श्रीराम ने पहले के जीवितकाल के प्रेम को ध्यान कर , पिता की ओर देखकर उन्हें अपने स्वरूप का दृढ़ ज्ञान करा दिया।
ज्ञान आते ही मोह समाप्त हो जाता है
अब जाकर दशरथ जी को मोक्ष मिला