रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥
उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥
जिनकी अठारह प्रकार की अनगिनत वनस्पतियाँ रोमावली हैं, पर्वत हड्डियां हैं , अमृत देने वाली सरिताएं नसों का जाल हैं, समुद्र पेट है और नरक नीचे की इंद्रियाँ हैं। कुल मिलाकर प्रभु विश्व भर में व्याप्त हैं, अधिक कल्पना क्या की जाए
प्रस्तुत है गिरि ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 06-02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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557 वां सार -संक्षेप
1 आदरणीय
स्थान :प्रयागराज
इन निरन्तर चल रहे वाणी संबन्धी यज्ञों से आचार्य जी हमें लाभान्वित करने का प्रयास करते हैं इनसे हम आनन्द का अनुभव करें
चिन्तन में जाएं तो हमें लगेगा हम सभी एक देश हैं
संपूर्ण भारतवर्ष में जितनी शक्तिमत्ता है उतनी ही हमारे अन्दर है यह अनुभव करना चाहिये देश की तरह हमारे शरीर में भी विचार हैं
देश की तरह ही हमारी भी एक शैली एक सिद्धान्त एक विचार एक पद्धति एक परम्परा है
हम किसी परंपरा को लेकर जन्मे है उसका परिपालन करते हुए उसको विश्वास के साथ अक्षुण्ण रखते हुए आगे चलते हैं हम बहुत सौभाग्यशाली हैं
भारतभूमि मात्र एक टुकड़ा नहीं है यहां अनेक अवतार हुए हैं
हम भी अवतार हैं स्वार्थों के कारण हम अवतारत्व भूल जाते हैं
लेकिन जब भी हमें अवतारत्व का अनुभव हो स्वयं उससे लाभान्वित होकर उसका वितरण भी करें
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर को सब कछु दरसाई॥
बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।
हम समस्याओं पर नजर रखें लेकिन उनसे व्याकुल निराश न हों तथाकथित बुद्धिजीवियों को सारे विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत में दोष ही दोष दिखते हैं
एक सद्भावी की टांग खींचने के लिये बहुत सारे दुर्भावी प्रकट हो जाते हैं
धर्मक्षेत्र शिक्षाक्षेत्र राजनीतिक्षेत्र कोई इससे अछूता नहीं
ऐसे में हमें परस्थ होने के विपरीत आत्मस्थ होने की आवश्यकता है
चारणीय वृत्ति मनुष्य को पतित करती है
हम आत्मज्ञ बनें
विश्वगुरु भारत के विचारों सिद्धियों निधियों को विश्वासपूर्वक आत्मसात् करें
New generation को इससे अवगत कराएं
अंग्रेजी बोलने में गर्व का अनुभव करना आत्महीनता है इससे दूर रहें
ध्यान प्राणायाम चिन्तन मनन स्वाध्याय निदिध्यासन उचित खानपान पर ध्यान दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने धीरेन्द्र शास्त्री, गुलाबराय का नाम क्यों लिया प्रयागराज में आचार्य जी कहां ठहरे हैं जानने के लिये सुनें