7.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 07-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥



प्रस्तुत है लब्धविद्य ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 07-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  558 वां सार -संक्षेप

1 विद्वान्


स्थान :सरौंहां


सामाजिक दायित्वों की चर्चा के साथ विलक्षण भारतीय साहित्य से परिचय कराकर उसके  ग्रंथों के प्रति श्रद्धा विश्वास उत्पन्न कर हमें लाभान्वित करने का प्रयास कराते ये संप्रेषण हमें लम्बे समय से प्राप्त हो रहे हैं यह ईश्वर की कृपा है


हम रामभावना -भावित


बै‍देहि अनुज समेत। मम हृदयँ करहु निकेत॥

मोहि जानिऐ निज दास। दे भक्ति रमानिवास॥


और कृष्णभावना -भावित होकर

धर्म के नाम पर समाज को बांटने वाले भारत को खंडित करने का प्रयास करने वाले मानस की प्रतियां जलाने वाले आधुनिक रजनीचरों से मुकाबला कर सकते हैं

हमारे अन्दर जब भाव 

आयेंगे तो शक्ति भी आयेगी यही  व्याकुलता दूर करने वाला शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है हमें शक्ति सम्पन्न बनकर अपने चरित्र व्यवहार आचरण बुद्धि व्यवस्थित करके समाजोन्मुखी जीवन जीना है तत्त्वबोध को प्राप्त कर चुके  महापुरुष दीनदयाल जी के वारिस होने के नाते हमारा यह दायित्व भी है

आइये चलते हैं लंका कांड में

इन्द्र कहते हैं


मोहि रहा अति अभिमान। नहिं कोउ मोहि समान॥

अब देखि प्रभु पद कंज। गत मान प्रद दुःख पुंज॥


सुनि ‍प्रिय बचन बोले दीनदयाल॥ 113॥


प्रभु सक त्रिभुअन मारि जिआई। केवल सक्रहि दीन्हि बड़ाई॥ ऐसे राम कहते हैं


हे देवराज! सुनिये , हमारे वनवासियों , जिन्हें राक्षसों ने मार डाला है, पृथ्वी पर पड़े हैं। इन लोगों ने मेरे हित के लिए अपने प्राण त्याग दिए अतः इन सबको ज़िला दें


यह है मनुष्यत्व


सुर अंसिक सब कपि अरु रीछा। जिए सकल रघुपति कीं ईछा॥

ये रामाकार हो गये राक्षस मृत रहे