8.2.23

¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 08-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है सक्तवैर -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 08-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  559 वां सार -संक्षेप

1 सक्तवैर =शत्रुता में प्रवृत्त


एक अद्वितीय शिक्षक आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी द्वारा उद्बोधित इन संप्रेषणों का जो सुअवसर हमें मिला है हमें उसका लाभ प्राप्त करना चाहिये 

 बहुत से उदाहरण ऐसे भी हैं कि शिक्षक कुण्ठित व्यथित व्यामोहित पराश्रित हो जाता है और तब शिक्षा न होकर ढोंग का प्रदर्शन होता है इसलिये शिक्षक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है हम भी शिक्षक की भूमिका में आकर नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से शौर्य प्रमंडित अध्यात्म से सनातन धर्म से संपूर्ण संसार का कल्याण करने वाले अद्भुत भारतीय साहित्य से परिचित करायें


अपनी भारतीय संस्कृति की ओर  उन्मुखता संभव है समाजोन्मुखता संभव है



यद्यपि रामत्व और शिवत्व को प्राप्त करना बहुत कठिन है लेकिन रामोन्मुखी और शिवोन्मुखी होना हमारे हाथ में है


और इसी को प्राप्त करने के लिये और अपने जीवन की दिशा और दृष्टि प्राप्त करने के लिये आइये चलते हैं लंका कांड में


सुमन बरषि सब सुर चले चढ़ि चढ़ि रुचिर बिमान।

देखि सुअवसर प्रभु पहिं आयउ संभु सुजान॥ 114(क)॥


पुष्प -वर्षा करके सारे देवता सुंदर विमानों पर चढ़-चढ़कर चले गये तब सुअवसर जानकर संसार के कल्याण हेतु विष धारण करने वाले त्रिपुरारि शिव  जी त्रिशिरारि भगवान् राम के पास आए और प्रेम से दोनों हाथ जोड़कर, आंखों में जल भरकर,   विनती करने लगे


उन्होंने अद्भुत स्तुति की


अनुज जानकी सहित निरंतर। बसहु राम नृप मम उर अंतर॥


नाथ जबहिं कोसलपुरीं हो‍इहि तिलक तुम्हार।

कृपासिंधु मैं आउब देखन चरित उदार॥ 115


हे नाथ! जब अयोध्या में आपका राजतिलक होगा, तब  मैं आपकी उदार लीला देखने आऊँगा


करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए॥

नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी॥


सकुल सदल प्रभु रावन मार्‌यो कहने वाले रावण के कुल के तारक विभीषण प्रभु के पास पहुंचे

और कहते हैं 

इस दास के घर को पवित्र कीजिए  स्नान कीजिए ताकि युद्ध की थकावट दूर हो जाए। खजाने , महल और सम्पत्ति का निरीक्षण कर प्रसन्नतापूर्वक वनवासियों को दीजिए॥


लेकिन भगवान् राम कहते हैं 



तोर कोस गृह मोर सब सत्य बचन सुनु भ्रात।

भरत दसा सुमिरत मोहि निमिष कल्प सम जात॥116 क॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 1997 बैच के भैया यतीन्द्र और  1982 बैच के भैया पुरुषोत्तम वाजपेयी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें