10.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 10-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥


प्रस्तुत है ज्ञान -पुरङ्गव ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 10-02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  561वां सार -संक्षेप

1 पुरङ्गवः =समुद्र


सदाचारी स्वभाव को धारण करने का संकल्प लेने के कारण ही हम श्रोताओं को ज्ञान के पुरङ्गव आचार्य जी द्वारा उद्बोधित इन सदाचार संप्रेषणों की प्रतिदिन प्रतीक्षा रहती है यह सद्भावनापूर्ण संपर्क संबन्ध बहुत अद्भुत है इसी तरह के संपर्क सम्बन्ध संसार सागर को तैरने में सहारा देते हैं

ये संप्रेषण मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हैं और इनसे  शिक्षा ग्रहण कर हम अपने मन के विकारों को दूर करके दुष्ट विकारियों से संघर्ष करने के लिये तैयार हो सकते हैं 


शरीर यदि मनुष्य का पशुत्व से विमुक्त है, 

अतीव क्षुद्र लोभ लाभ से परम वियुक्त है, 

कभी दया की भीख के सपन नहीं जतन नहीं, 

मनुष्य का कभी कहीं किसी तरह पतन नहीं।


आज कल इन संप्रेषणों में

शक्ति बुद्धि भक्ति पुरुषार्थ करने का उत्साह देने वाली राम कथा


रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥



(यह कथा कलियुगरूपी सर्प के लिए मोरनी है साथ ही विवेक रूपी अग्नि के प्राकट्य हेतु अरणि (मंथन की जाने वाली लकड़ी ) 



  चल रही है


संदेह मोह और भ्रम को समाप्त करने में सक्षम मानस की कथा संसार रूपी नदी को पार करने वाली नौका है


हम राष्ट्र- भक्तों के जिनका ध्येय -वाक्य 

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "


है

के बहुत से संकल्प   भगवान् राजा तपस्वी विचारक चिन्तक दीनदयालु हमारे साथी राम  के उद्घोष जय श्रीराम ने पूर्ण किये हैं

आइये चलते हैं लंका कांड में



तीखे कांटों में खिले गुलाब की तरह भक्त मोक्षकामी  विभीषण कहते हैं

,

सब बिधि नाथ मोहि अपनाइअ। पुनि मोहि सहित अवधपुर जाइअ॥

लेकिन भगवान् राम अब भरत से मिलना चाहते हैं जो

तपस्वी के वेष में दुबले शरीर से निरंतर उनका नाम जप  रहे हैं 

पद्मपुराण के पाताल खंड में भरत जी का विस्तृत दिव्य वर्णन है

मणियों के समूहों (रत्नों) से और वस्त्रों से भरे पुष्पक विमान को विभीषण प्रभु के सामने ले आये

लेकिन भगवान् राम कहते हैं


चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन। गगन जाइ बरषहु पट भूषन॥

जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं।


स्वयं भगवान् राम तो निर्लिप्त हैं ही उनकी सेना भी निर्लिप्त है तभी भोगी रावण पराजित हुआ इसी निर्लिप्तता में बहुत बल होता है 


आज का Take home message

हम भगवान् राम में रमकर सांसारिक समस्याओं को हल करने के लिये तैयार हों