11.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 11-02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कृच्छ्रकृत् ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 11-02- 2023

(पं दीनदयाल उपाध्याय  जी की पुण्य तिथि )

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  562वां सार -संक्षेप

1 =तपस्वी



अनगिनत रूप इस जीवन के क्रमवार बताना मुश्किल है

दीपक जैसी यह ज्योत टिमकती जलती रहती तिल तिल है

तिल तिल जलकर प्रकाश देते रहना ही इसका लक्षण है

मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है


भारत मां के सत्पुत्र दीनदयाल जी इसी विलक्षण जीवन की एक  विग्रह मूर्ति थे

 दुष्टों ने उनकी हत्या कर दी

केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है

 

संसार से बहुत से लोग चले जाते हैं लेकिन कथा उन्हीं की  सुनाई जाती है जो आदर्श बनते हैं

भारत मां के सत्पुत्रों को बहकाना आसान नहीं या यूं कहें नामुमकिन है

बहकना जितना बन्द हो जाता है दिशा सुस्पष्ट हो जाती है दृष्टि भेदक हो जाती है


मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद।

ऐसे शब्दों के परे कृपासिंधु भगवान् राम की कथा में आइये प्रवेश करते हैं


उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम।

राम कृपा नहिं करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम॥117 ख॥


शिवजी पार्वती जी से कहते हैं बहुत प्रकार के योग, जप, दान, तप, यज्ञ, व्रत और नियम करने पर भी प्रभु राम वैसी कृपा नहीं करते जैसी अनन्य प्रेम होने पर करते हैं

ये वनवासी आदि प्रेम से ही बंधे थे और जिनके लिये भगवान् राम कहते हैं


तुम्हरें बल मैं रावनु मार्‌यो

(यही रामत्व है )

उनकी निस्पृहता वर्णनातीत है

निस्पृहता संसार में विजय प्रदान करती है

परमात्मा निस्पृह भक्तों के साथ आनन्द मनाता है


निज निज गृह अब तुम्ह सब जाहू। सुमिरेहु मोहि डरपहु जनि काहू॥

भगवान् राम ने कहा

आप लोगों ने आत्मबल आत्मशक्ति आत्मविश्वास संगठन के महत्त्व को दर्शाने वाले भाव 

राष्ट्र के प्रति प्रेमभाव की जागृति प्राप्त कर ली है अब आप वनवासी अपने अपने घर जा सकते हैं

इन तत्त्वों का सदैव स्मरण करते रहना

भय भ्रम से दूर रहना

यही रामत्व हमें धारण करना है

प्रेम सीमाबद्ध नहीं है स्थान व्यक्ति वस्तु से हो ही जाता है लेकिन यदि तत्त्व से हो जाये तो फिर कहना ही क्या


प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि।

हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि॥118 क॥


राम जी ने अतिशय प्रेम देखकर सबको विमान पर चढ़ा लिया। और मन ही मन विप्रचरणों में सिर नवाकर उत्तर दिशा की ओर विमान चला दिया