कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि॥
सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि॥118 ग॥
प्रस्तुत है संविदात ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 12-02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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563 वां सार -संक्षेप
1 =प्रतिभाशाली
शिक्षा के विकृत होने से शिक्षार्थी और शिक्षक के स्वरूप समाज में समस्याएं खड़ी हो जाती हैं लेकिन उनका समाधान भी शिक्षा में ही छिपा है
शिक्षा शक्ति भक्ति विचार संस्कार और मनुष्य जीवन का सर्वश्रेष्ठ वरदान है
शिक्षा को तैत्तिरीय उपनिषद् में बहुत सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया गया है
सह नौ यशः। सह नौ ब्रह्मवर्चसम्। अथातः संहिताया उपनिषदं व्याख्यास्यामः। पञ्चस्वधिकरणेषु। अधिलोकमधिज्यौतिषमधिविद्यमधिप्रजमध्यात्मम् ll
हम दोनों आचार्य और शिष्य एक साथ यशस्वी बनें , एक साथ ब्रह्मवर्चस प्राप्त करें । इसके बाद हम संहिता के गूढ़ अर्थ की व्याख्या करेंगे जिसके पाँच प्रमुख विषय (अधिकरण) हैं
लोकों से सम्बन्धित, ज्योतिर्मय अग्नियों से सम्बन्धित, विद्या से सम्बन्धित ,प्रजा से सम्बन्धित और आत्मा से सम्बन्धित ll
शिक्षा में बहुत कुछ है कैसा व्यवहार हो कैसा जीवन जिया जाये आदि आदि लेकिन यह काम कठिन है फिर भी इसके लिये प्रयासरत रहना चाहिये
मानस में
सेवत सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक
भगवान् राम के विविध रूप देखने को मिलते हैं
जौं मैं राम त कुल सहित कहिहि दसानन आइ॥ 31॥
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
या
पूछत चले लता तरु पाँती॥4॥
या
अनुज देखि प्रभु अति दु:ख माना॥3॥
और ऐसा स्वरूप भी जिसका तुलसी जी ने जिक्र नहीं किया
राम जी का आविर्भाव और तिरोभाव जीवन के नाट्य मञ्च जैसा है
भगवान् राम
इच्छामय नरबेष सँवारें। होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारें॥
अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥
का जीवन देखिये तुलसीदास जी का जीवन देखिये हम लोग अपना जीवन भी देखें तो
हम सब का जीवन एक ही सूत्र में पिरोया हुआ है सूत्रधार एक है नट अलग अलग हैं
घोर संघर्षों के बाद भी राम विचलित नहीं हुए व्याकुल नहीं हुए विराग राग साथ साथ चलता रहा
जीवन का संघर्ष लंका कांड में चरम पर है
राम धर्मरथ का उपयोग बतलाते हैं जब विभीषण को संदेह है
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
हमारा इतिहास कितने अरब वर्षों का है सनातन धर्म कब से है ये रहस्य हैं और जब तक हमारा प्रवेश वास्तविक शिक्षा के गलियारे में नहीं होगा तब तक हम ऐसे रहस्यों को सुलझा नहीं पायेंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई
केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है.....
और आचार्य जी ने किस विश्वनाथ वाराणसी के कार्यक्रम की चर्चा की जानने के लिये सुनें