प्रयास हो कि आत्मबोध शौर्य से समृद्ध हो,
जवानियाँ स्वदेश की सदैव नित्य सिद्ध हों,
कि विश्व में सभी जगह सुभारती प्रसिद्ध हो
न हम कभी किसी समय प्रलुब्ध आत्ममुग्ध हों। ।
प्रस्तुत है संशप्तक ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 13 -02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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564 वां सार -संक्षेप
1 =ऐसा योद्धा जिसने युद्ध में डटे रहने की कसम खाई हो
जीवन में प्राणतत्त्व और आत्मबोध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है यद्यपि वह शरीर की शक्ति से संयुत रहता है लेकिन वह शरीर नहीं है
यह अनुभव और इस अनुभव के आधार पर मिलने वाला आनन्द यदि कुछ समय के लिये ही हमें प्राप्त हो जाता है तो हम ऐसे काम कर जाते हैं जिन पर हमें स्वयं भी आश्चर्य होता है
जय रघुबीर कहइ सबु कोई॥
ऐसे कार्यों में देवता वर्ग सहायक होता है उन देवों में भी एक महादेव हैं और उन महादेव के अंश सेवा, शक्ति, पराक्रम, बुद्धि, तप, समर्पण के पर्याय हनुमान जी हमारे सदैव सहायक हैं
भारत राष्ट्र भूमण्डल की संस्कृति है इसी
राष्ट्र के प्रति निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष भी हमारा कार्य है
आइये चलते हैं सायुज्य भक्त बनने का प्रयास करते हुए लंका कांड में
उस लंका से विदाई का समय है जो अब भक्त विभीषण के सुरक्षित हाथों में है लंका के निवासी अब कर्तव्य की मूर्ति व्यवहार का आदर्श संपूर्ण जीवन का मर्म धर्म कर्म विश्वास विचार विप्रत्व के पर्याय भगवान् राम के कार्य के साधक अनुवर्ती सहायक हो गये हैं
प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि।
हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि॥118 क॥
कपिपति नील रीछपति अंगद नल हनुमान।
सहित बिभीषन अपर जे जूथप कपि बलवान॥118 ख॥
कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि॥
सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि॥118 ग॥
वे कुछ कह नहीं सकते, प्रेमवश नेत्रों में जल भर-भरकर, टकटकी लगाए
उपसंहार की भूमिका में आ गये प्रभु राम की ओर देख रहे हैं
आचार्य जी ने इसी से संयुत करते हुए धनुष यज्ञ के अद्भुत रोचक प्रसंग का उल्लेख किया जब राम जी का जीवन प्रारम्भ होने जा रहा है
जीवन के यही उतार चढ़ाव हैं
शेषावतार लक्ष्मण को आवेश आ जाता है
कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान।
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह कहने वाले तपस्वी
भगवान् राम पैदल चलकर दक्षिण दिशा की ओर आये थे अब विमान द्वारा उत्तर दिशा की ओर जा रहे हैं लेकिन दम्भ बिल्कुल नहीं है सीता जी को सारे स्थान दिखाते जा रहे हैं
जहँ जहँ कृपासिंधु बन कीन्ह बास बिश्राम।
सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम॥119 ख॥
और
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥
ऋषियों की कृपा से ही यह संभव हो पाया ऐसे हैं भगवान् राम अहंकार बिल्कुल नहीं