कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है
हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है
प्रस्तुत है अनुशर -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 14 -02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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565 वां सार -संक्षेप
1 अनुशर =राक्षस
अतुलित बल के धाम हनुमान जी की कृपा से प्रसाद के रूप में प्राप्त इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहने के बाद भी जीवन में आनन्द की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं हमें समस्याओं का निवारण मिल सकता है
प्राकृतिक आपदाओं पर दृष्टिपात करें तो ऐसा लगता है हमारे ऋषियों द्वारा दिए गये संकेत प्रतिफलित हो रहे हैं सदैव पाकिस्तान के पक्ष में बोलने वाले भारत के विरोधी देश तुर्किये को प्रकृति ने दंड दिया है लेकिन भटके राही को राह दिखाने वाले भारत ने सहायता के लिये अपने हाथ बढ़ा दिये क्योंकि मनुष्य मात्र को एक पिता की संतान मानने वाले
भारत ने तो सदा पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब माना है
यही मनुष्यत्व है
राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों के कुविचारों की काट के रूप में अपने सद्विचारों को दृढ़ता के साथ थामे रहना और उचित समय पर उनका प्राकट्य आज के समय की मांग है
हमारे अंदर असीम शक्ति भरी हुई है इसलिये हमें निराश व्याकुल नहीं होना चाहिये रामश्रित रहें
उचित कार्यों में लगे रहने का हम लोग प्रण करें जिस तरह से तुलसीदास जी
जिनके बारे में ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं
प्रचंड तेज शक्ति शील रूप के विधान हो
अनिन्द कर्म धर्म मर्म शर्म संविधान हो
उदार हो विदार हो प्रफ़ुल्ल कोविदार हो
प्रसार भक्ति भाव राम नाम के प्रचार हो
(शर्म का अर्थ रक्षा,विदार का अर्थ युद्ध, कोविदार का अर्थ कचनार)
ने हारे मानस की आस रामकथा को प्रस्तुत कर एक उचित कार्य किया
समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥121 क॥
आइये इसी कथा के लंका कांड में प्रवेश करते हैं
पुष्पक विमान में लक्ष्मण जी महाराज हनुमान जी महाराज श्री राम औऱ मां सीता के आसन के पीछे खड़े हैं
तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा॥
कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना॥1॥
कार्य पूरा होने पर जिन लोगों ने भी भगवान् राम का मार्गदर्शन किया सहायता की उन सबके पास पुनः राम जी गये उन्हें भूले नहीं
चित्रकूट आया यमुना गंगा मिलीं
पुनि देखु अवधपुरि अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि॥5॥
जन्मभूमि देखकर भगवान् राम के नेत्र अश्रुपूरित हो गये
सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम॥120 क॥
और हनुमान जी से कहा
भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु॥1॥