राजत रामु सहित भामिनी। मेरु सृंग जनु घन दामिनी॥
रुचिर बिमानु चलेउ अति आतुर। कीन्ही सुमन बृष्टि हरषे सुर॥3॥
प्रस्तुत है धर्मापेत -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 16 -02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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567 वां सार -संक्षेप
1 धर्मापेत =दुराचारी
कुटुम्बवृद्धिं धनधान्यवृद्धिं
स्त्रियश्च मुख्याः सुखमुत्तमं च।
श्रुत्वा शुभं काव्यमिदं महार्थं
प्राप्नोति सर्वां भुवि चार्थसिद्धिम्॥ १२४॥
आयुष्यमारोग्यकरं यशस्यं
सौभ्रातृकं बुद्धिकरं शुभं च।
श्रोतव्यमेतन्नियमेन सद्भि-
राख्यानमोजस्करमृद्धिकामैः॥ १२५॥
इस तरह के उत्कृष्ट छंदों वाली रामायण में वर्णित ,अनेक पुराण, वेद और शास्त्रों से सम्मत और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा का मैं तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा में रचना का विस्तार करता हूँ।
कलियुग का वेद
यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।
श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥121 ख॥
, अत्यन्त लाभकारी और ज्ञान का अथाह भण्डार राम चरित मानस हमें शक्तिसम्पन्न, स्वाध्यायी, संयमी, बुद्धिमान, विचारवान बनाता है
इसमें सामजिक दायित्व आदर्शस्वरूप में प्रस्तुत हुए हैं
शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को दर्शाने वाले, बेचारगी को दूर करने वाले इस ग्रंथ का हमें भ्रमरहित होकर अवश्य पारायण करना चाहिये जिससे स्वयं का विस्तार इतना अधिक हो जाता है कि हम स्वयं राममय हो जाते हैं
राममयता परमात्म के अंश आत्म पर आधारित है
आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत
सज्जन सत का ग्रहण करते हैं असत का त्याग करते हैं
आइये सत को ग्रहण करने के लिये चलते हैं मानस के लंका कांड में जिसका आज समापन हो रहा है
सुरसरि नाघि जान तब आयो। उतरेउ तट प्रभु आयसु पायो॥
तब सीताँ पूजी सुरसरी। बहु प्रकार पुनि चरनन्हि परी॥4॥
सीताजी ने बहुत प्रकार से मां गंगा की पूजा की और उनके चरणों पर गिरीं
यदि हम सुविज्ञ जनों के सुपथ पर चल रहे हैं तो प्रकृति हमें अपनी मां दिखती है इस तरह गंगा हमारी मां हुईं
मां गंगा ने मन में हर्षित होकर आशीर्वाद दिया- तुम्हारा सुहाग अखंड हो
सुनत गुहा धायउ प्रेमाकुल। आयउ निकट परम सुख संकुल॥5॥
निषादराज प्रेम का आदर्श है
भगवान् राम को देखते ही उसका आनंद सहस्रगुणित हो जाता है
सब भाँति अधम निषाद सो हरि भरत ज्यों उर लाइयो।