समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥121 क॥
जो समझदार व्यक्ति प्रभु राम की समर में मिली विजय संबंधी लीला को सुनते हैं और फिर गुनते हैं आत्मसात् करते हैं और जिनके मन में विजय के लिये संकल्पित समर्पण है , उन सबको भगवान नित्य विजय, विवेक और ऐश्वर्य देते हैं
विवेक शून्य ऐश्वर्य की कामना का कोई औचित्य नहीं है
प्रस्तुत है ज्ञान -अकूपार ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 17 -02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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568 वां सार -संक्षेप
1 अकूपारः =समुद्र
पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया
कुदरत से लोहा लेने को आतुर है शैतानी दुनिया
केवल भाषा तक सीमित है संयम विवेक सच सदाचार
आचरण भ्रष्ट दुनियादारी के नाम लिख रहे कदाचार
ईश्वर या अखिलनियन्ता को केवल विपत्ति में करें याद
आपदा टली अलमस्त हुए फिर शुरु हुआ लोकापवाद......
हम केवल भाषा तक संयम विवेक सत्य तप सदाचार को सीमित न रखें अपितु इन सदाचार संप्रेषणों के रूप में हमें जो अवसर मिला है उसका लाभ उठाकर वास्तव में संयमी विवेकी तपस्वी सदाचारी बनने का प्रयास करें
आचार्य जी ने सनातन दर्शन को परिभाषित करते हुए बताया कि मानस के सात कांडों के माध्यम से चिन्तक विचारक मनीषी तुलसीदास जी ने भारतीय धर्म और दर्शन को प्रतिपादित किया है
इसमें उच्च दार्शनिक विचार धार्मिक जीवन और सिद्धान्त वर्णाश्रम अवतार ब्रह्मनिरूपण ब्रह्मसाधना सगुण निर्गुण मूर्तिपूजा देवपूजा गो रक्षा ब्राह्मण रक्षा वेदमार्ग का मण्डन अवैदिक और स्वच्छन्द पन्थों की आलोचना कलियुग की निन्दा कुशासन की निन्दा रामराज्य की प्रशंसा पारिवारिक सम्बन्ध प्रेम सामाजिक कर्तव्य पातिव्रत्य धर्म नैतिक आदर्श आदि का समावेश है
अकबर के कुशासन में उस समय हिंदू धर्म पर विपत्ति के बादल मंडरा रहे थे अच्छे अच्छे लोग सुख सुविधा भोग विलास के लालच में आकर भ्रमित हो गये थे वेद और शास्त्रों का अध्ययन लगभग बन्द हो गया था लोकभाषा में रचित चरित ने उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को सजीव और अनुप्राणित किया
लंका कांड का समापन हो चुका है उत्तरकांड को सुनने से पहले हम एक मनोभूमिका बनायें
उत्तर कांड में जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर हैं यदि जीवन जीने में चिन्तन मनन साथ साथ चलता रहे तो प्रश्न आने पर उत्तर भी मिलते जायेंगे
हम अच्छा अच्छा प्राप्त करें और उसे फिर बांटें
बिना लोभ लालच के सेवा करें
शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को अपनाएं
परमात्मा ने अपनी ज्योति को हमारे अंदर प्रविष्ट कराया है उसकी अनुभूति करें
ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आये जो दिन दुखी सब को गले से लगाते चलो
जिसका ना कोई संगी साथी ईश्वर है रखवाला
जो निर्धन है जो निर्बल है वो है सबका प्यारा
प्यार के मोती लुटाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो
सांसारिक प्रपंचों में ही लिप्त रहने पर हम लुप्त हो जायेंगे
संगठन के सूत्र अपनाएं
स्वार्थ से अपने को दूर कर परमार्थ का रास्ता अपनाएं