कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्।
कारुणीककलकन्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम्॥3॥
कुन्द के फूल, चंद्रमा और शंख के समान गौर वर्ण, पार्वती जी के पति, मनचाहा फल देने वाले, दयालु , कमल के समान नेत्र वाले, अनंग अर्थात् कामदेव से छुड़ाने वाले श्री शंकर जी को मैं नमस्कार करता हूँ
प्रस्तुत है शिवगति ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 18 -02- 2023 (शिवरात्रि )
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
569 वां सार -संक्षेप
1 शिवगति =समृद्ध
हमारे सनातन धर्म में परिस्थितिवश व्यवस्थाएं बना ली जाती हैं विकल्प से बहुत सारी व्यवस्थाओं की उपलब्धता के कारण इसे मानव धर्म कहा जाता है
सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ धर्म है इसमें हमें संशय नहीं होना चाहिये
पश्चिमी सभ्यता के कारण हमें जो भ्रम हो गया है उसके निराकरण के लिए, उथल पुथल का ये जो समय चल रहा है उसमें अपनी मंजिल पाने के लिये,अपनी उलझनों को शांत करने के लिये ये सदाचार वेलाएं हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिये
संकल्प जाग्रत होने पर हमें अपने शरीर की भी सुध नहीं रहती लेकिन हमें अपने शरीर की उतनी सेवा तो करनी ही चाहिये कि वह असहयोग न करे
सर्वदा सुप्रसन्न रहने वाला रामत्व धारण करने के लिये, अपनी शक्ति (शक्ति की उपासना युग धर्म है )को जाग्रत करने के लिये आइये प्रवेश करते हैं उस कवि, जिसे धनुष बाण हाथ में लिये राम भाते हैं(शौर्य प्रमंडित अध्यात्म ),की कृति राम चरित मानस
रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥
रामचरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥
में
उत्तर कांड का प्रारम्भ इस प्रकार है
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं
शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं।
नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्॥1।
मयूर कण्ठ की आभा के समान नीले वर्ण वाले , देवताओं में श्रेष्ठ, भृगु जी के चरणकमल के चिह्न से शोभित, शोभा से पूर्ण, पीताम्बरधारी, कमल के समान नेत्र वाले , सदा प्रसन्न रहने वाले , हाथों में बाण और धनुष लिये हुए, वनवासी समूह से युक्त भाई लक्ष्मण से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य, मां सीता के पति, रघुवंश में श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री राम जी को मैं नमस्कार करता हूं
रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग।
जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम बियोग॥
इसकी व्याख्या आचार्य जी ने किस प्रकार की और आगे क्या बताया जानने के लिये सुनें