20.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का दिनांक 20 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा॥

सरिता जल जलनिधि महुँ जोई। होइ अचल जिमि जिव हरि पाई॥4॥



प्रस्तुत है  जातुधान -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज दिनांक 20 -02- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *571 वां* सार -संक्षेप

1जातुधान =राक्षस



स्थान :उन्नाव



प्रायः प्रत्येक मनुष्य का, व्यक्तिगत विकास  विस्तार उन्नति सुख सुविधाओं के लिये प्रयत्नशील रहना, स्वभाव है

मूल रूप से मनुष्य की प्रकृति  दिव्य है लेकिन वह प्रकृति को विस्मृत कर प्रवृत्तियों में लिप्त हो जाता है


सहज स्वाभाविक मनुष्य अविकृत है लेकिन संसार में आकर उसी प्रकार विकृत हो जाता है  *जनु जीवहि माया लपटानी*


 जैसे

भूमि परत भा ढाबर पानी।

वह विकृत मनुष्य मक्खी की भांति घावों की तलाश में रहता है हम अविकृत मनुष्यों के लिये,जिन्हें मधुमक्खी की तरह सुमन की तलाश है, विकृत मनुष्यों की  बढ़ोत्तरी  चिन्ता और चिन्तन का विषय है

राम की कथा सुनने के पीछे हमारा एक उद्देश्य होना चाहिये

अपनों के प्रति किसी प्रकार की कुशंका नहीं हो यह रामत्व है यह मनुष्यत्व ही भारत का चिन्तन है

लोभी कब्जा करने वाला रावण है कव्जा   छुड़ाकर शांति स्थापित करने वाले राम होते हैं हमें इसी रावणत्व की समीक्षा कर अपने अंदर से दूर कर रामत्व को प्रवेश कराने का प्रयास करना चाहिये


आइये प्रवेश करते हैं उत्तर कांड में


राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत।

बिप्र रूप धरि पवनसुत आइ गयउ जनु पोत॥1क॥


बैठे देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात॥

राम राम रघुपति जपत स्रवत नयन जलजात॥1ख॥



रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि हनुमान जी ने देखा कि दुर्बल शरीर वाले भरत जी  जटाओं का मुकुट बनाए हुए राम  राम जपते और  नेत्रों से  जल बहाते कुश के आसन पर बैठे हैं


हनुमान जी इस बात को विशेष रूप से बता रहे हैं कि प्रभु राम लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ आ रहे हैं क्योंकि जब भरत जी से पहले उनकी मुलाकात हुई थी तब सीता जी लंका में रावण के कब्जे में थीं और लक्ष्मण जी के जीवन पर संकट के बादल थे


सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा॥3॥


हनुमान जी ने जैसे ही अपना परिचय दिया भरत जी उठकर आदरपूर्वक हनुमान जी से गले लगकर मिले।


हनुमान जी की भक्ति की मिसाल नहीं है भगवान् भी ऐसे भक्त का ऋणी हो जाता है

हनुमान जी त्याग तप प्रेम समर्पण के प्रतीक हैं


इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया भैया पवन मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें