छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥
पानी से छोटी नदियाँ भरकर किनारों को तुड़ाती हुई चलीं, जिस प्रकार थोड़े धन से भ्रमित होकर दुष्ट इतराने लगते हैं
प्रस्तुत है सरभस ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
फाल्गुन शुक्ल तृतीया विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 22 -02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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573 वां सार -संक्षेप
1 = प्रसन्न
स्थान :सरौंहां
अत्र कुशलं तत्रास्तु
समस्याओं से भरे इस संसार में हमें क्षुद्र नदियों जैसा न होकर एकाग्र होकर किसी भी प्रकार के भ्रम, भय और शैथिल्य को त्यागकर अपनी देवभूमि स्वर्णभूमि रत्नभूमि भारत मां की सेवा के लिये तत्पर रहना चाहिये हमारा उद्देश्य भी यही है
राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
हमें असामान्य अद्वितीय आचार्य जी द्वारा प्रोक्त सदाचार संप्रेषणों के रूप में प्राप्त आनन्द के इन क्षणों का लाभ उठाना चाहिये हमें आत्मस्थ होने का प्रयास करना चाहिये
आत्मस्थता से शरीर के, परिवेश के विकार प्रभावित नहीं करते
अपनी अन्तः और बाह्य प्रकृति दोनों को आनन्दमय बनाकर उत्साहित होने का प्रयास करें हम प्रसन्न हैं तो सर्वत्र प्रसन्नता का हम अनुभव करेंगे
आइये प्रवेश करते हैं रामकथा में
उत्तर कांड में आगे
भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं।
कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि॥2 ख॥
फिर भरत जी के चरणों में सिर झुकाकर हनुमान जी तुरंत प्रभु राम जी के पास आ गए और उन्होंने सब कुशलता का वर्णन कर दिया तब प्रभु राम हर्षित होकर विमान पर चढ़कर चल दिये
इधर भरत जी भी खुश होकर अयोध्या आए और उन्होंने गुरु वशिष्ठ जी को सारा समाचार सुनाया! फिर राजमहल में समाचार दिया कि श्री राम नगर को आ रहे हैं
श्री रामजी के स्वागत के लिए दही, दूब, रोचना , फल, फूल एवं तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थाली में भर-भरकर सौभाग्यवती स्त्रियाँ गाती हुई चलीं
आचार्य जी ने अनिरुद्धाचार्य, भैया अजय शंकर, भैया पंकज की चर्चा क्यों की आचार्य जी चित्रकूट कब जा रहे हैं डंड़वाड़ा क्या है जानने के लिये सुनें