प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना॥
राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू॥2॥
प्रस्तुत है संहृष्ट ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
फाल्गुन शुक्ल पञ्चमी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 24 -02- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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575 वां सार -संक्षेप
1 = प्रसन्न
यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ
युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ
( 44 वीं कविता अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं से )
इस समय अविश्वास से भरा वातावरण है हर व्यक्ति समीक्षक बना हुआ है बुद्धि अन्धी है जो बोलें उस पर पहले विचार अवश्य करें कि इसका प्रभाव क्या होगा कभी कभी हम कुछ का कुछ बोल जाते हैं
अतिरिक्त बोलने के कारण कुमार विश्वास को बेइज्जत होना पड़ा
विश्वास से लबालब एक बुद्धिमान कुमार ने,
भरी सभा में मुझे अनपढ़ कहा..
सांसारिक प्रपंचों से हटकर
उस संसार से हटकर जहां सगे सौतेले का हिसाब किताब है,आइये प्रवेश करते हैं अद्भुत लोकग्राह्य कृति रामचरित मानस में जहां हम ऐसे राम को पाते हैं जिनकी दृष्टि में सारा ही उनका परिवार है
रामचरितमानस की रचना भले ही तुलसी ने स्वान्तः सुखाय हेतु की हो लेकिन तुलसी का वह स्वान्तः सुखाय विश्व साहित्य तथा विश्व जन का ही स्वान्तः सुखाय है
ऐसा लगता है तुलसी का अन्तःकरण पूरे समाज में विकसित और विलसित हो रहा है
राम की भक्ति लोक की ही भक्ति है
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु॥4 ख॥
चौदह वर्ष बाद भी राम जी की स्मृति को अपने मन में संजोए
लोग भागे भागे चले आ रहे हैं यह देखकर
विमान से उतरकर प्रभु राम ने पुष्पक विमान से कहा कि तुम अब कुबेर के पास चले जाओ अब मुझे आवश्यकता नहीं
श्री रामचंद्र जी की प्रेरणा से वह चला, उसे कुबेर के पास जाने का हर्ष है और प्रभु से अलग होने का दुःख भी
बामदेव बसिष्ट मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक॥1॥
अब प्रभु राम योद्धा राम नहीं है शिष्य राम हैं धनुष बाण रख दिया
राम जी के प्रारम्भिक गुरु वशिष्ठ भी बहुत दुःखी थे जब राम जी वन जा रहे थे लेकिन वो जानते थे कि प्रबल भावी को कोई मेट नहीं सकता
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज॥3॥
भरत जी पृथ्वी पर पड़े हैं, उठाए उठते नहीं
तब श्री रामजी ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें