27.2.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल अष्टमी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 27 -02- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ये जीवन भावना सुविचार कर्मों का समन्वय है, 

चरित्रों का चतुर चित्रण रहस्यों का अनन्वय है, 

ये जीवन सत्य का संधान मिथ्या की कहानी है, 

सृजन के आदि अध्वर की अनोखी सी निशानी है।



प्रस्तुत है  निष्णात आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 27 -02- 2023

(श्रद्धेय नाना जी देशमुख का निर्वाण दिवस )

का  सदाचार संप्रेषण 

 

https://sadachar.yugbharti.in/


  578 वां सार -संक्षेप



स्थान :चित्रकूट


रामकथा के माध्यम से आचार्य जी यह बताना चाहते हैं कि हम अपना चिन्तन पक्ष विचार पक्ष विकसित कर जो व्यवहार करेंगे वो हमें संतुष्ट तो करेगा ही आस पास का वातावरण भी आनन्दमय बनायेगा


कहीं कुछ भी अनिष्ट घटित होता रहा और हम चुपचाप घर पर बैठे रहें  तो ऐसी कठोरता हमारे अन्दर नहीं है हम लोग तो सद्विचार ग्रहण कर समाजोन्मुखी जीवन जीने के लिये उत्साहित उद्यत रहते हैं

समाज के अन्दर साधना करने की रुचि जाग्रत हो यह आत्मानुभूति करके हम इसी आत्मानुभूति को बांटने के लिये उद्यत रहते हैं यही शिक्षा है यही संस्कार है

रामराज्य की भी यही शिक्षा है


तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि

विप्र चिन्तक विचारक तपस्वी है गाय सामान्य पशु नहीं है गाय तो संसार की संपन्नता का आधार है  धरती और देवता भी हमेशा देने के लिये तैयार रहते हैं


और जब विप्र गाय देवता और धरती को कष्ट मिलता है तो विविध शरीर धारण कर प्रभु अवतरित होते हैं और सज्जनों के कष्टों का निवारण करते हैं


विविध शरीरों में हम सब है यही रामत्व है


असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।

जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥ 121॥


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


अपने रामत्व की समीक्षा भी करते रहें

रामकथा का तत्वबोध  यही है कि हम अंश अंशी जैसा व्यवहार करें

असुर सर्वत्र दिखाई देते हैं

जो स्वार्थी होते हैं वे परेशान रहते हैं

त्याग तप परमार्थ ही रामत्व है

आचार्य जी ने धनुष यज्ञ के प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि गुरु की आज्ञा मानना भी रामत्व है