फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग गज पंचानन॥
खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई॥1॥
प्रस्तुत है दाण्डाजिनिक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 14-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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593 वां सार -संक्षेप
1दाण्डाजिनिक =ठग
हनुमान जी की कृपा से और भगवान् राम के वरदान से तुलसीदास जी ने बहुत ही सहज ढंग से लिख दिया
अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने।
षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने॥
फल जुगल बिधि कटु मधुर बेलि अकेलि जेहि आश्रित रहे।
पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे॥5॥
आचार्य जी ने बताया कि कुछ दिन पूर्व उत्तरकांड में आये इस अंश को समझने की जिज्ञासा भैया डा पंकज में जाग्रत हुई और उन्होंने इस पर अनुसंधान किया और इसमें सफलता प्राप्त की
सारे कार्यव्यवहारों में लगे रहने के पश्चात् भी इस प्रकार की अनुसंधित वृत्ति सराहनीय है
हम सब व्यस्त हैं यही व्यस्तता आनन्द का मूल है
सृष्टि के वैविध्य में आनन्द की अनुभूति करें
हम सब लोग भी इसी प्रकार के अनुसंधान कर सकते हैं
यह मानकर कि हमारा यह शरीर रूपी यन्त्र क्षरणशील है
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः के लिए हम संकल्पित हों
धर्मरत पुनी
धर्म अपने जीवन का विकास है
हमारे ऋषियों ने भारतवर्ष की जो वन्दना की है वह दिव्य है
मानस से ही हम अपना अनन्तगुणित विकास कर सकते हैं इसका पाठ ही हम करते रहें तो हमारे अंदर कभी भी अध्ययन का भाव जाग सकता है
आइये चलते हैं उत्तरकांड में
राम राज्य में आनन्द ही आनन्द है
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
एक ओर रामराज्य और दूसरी ओर इस समय भारत की स्थिति
यह वर्तमान स्थिति व्यथित करती है
हमारा कर्तव्य है कि हम जाग्रत रहें
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥3॥
इसके अतिरिक्त
आचार्य जी ने आयुर्विज्ञान की विशेषता बताई
आचार्य जी ने अभिमन्त्रण का अर्थ स्पष्ट किया