फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग गज पंचानन॥
खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई॥1॥
प्रस्तुत है लोकाधिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 15-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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594 वां सार -संक्षेप
1 असाधारण
राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
प्रभु राम की कथा सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं वे उसका विशेष रस जान ही नहीं पाए
हमें तो इसे बार बार सुनना है अभी तो हम इसे सांकेतिक रूप से सुन रहे हैं और आचार्य जी हमें गहन मन्थन की प्रेरणा देने और अध्यात्म के द्वार तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं
मनुष्य के दो स्वरूप हैं संबन्धों का स्वरूप और तात्विक स्वरूप
हम लोग संबन्धों में ही उलझते पुलझते रहकर समय व्यतीत करते रहते हैं जिसके कारण तात्विक स्वरूप की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते
तुलसीदास जी ने कथा में बहुत से स्थानों पर हमें याद दिलाया है कि हम अपने तात्विक स्वरूप की ओर भी ध्यान दें हम अणु आत्मा हैं और वो विभु आत्मा हैं जो धर्म की हानि देखकर
धरि बिबिध सरीरा
उत्तरकांड में बहुत विशेष प्रसंग नहीं हैं इसमें प्राकृतिक पारिवारिक सामाजिक परिस्थितियां आदि वर्णित हैं
वनवासियों भाइयों आदि के रूप में प्राप्त
शक्तियों के साथ अवतरित हुए सर्वत्र मान्य भगवान् राम
(ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।
सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार॥25॥)
जो पुरुष हैं उन्हें मां सीता मिलीं जो प्रकृति के रूप में शक्ति हैं
प्रकृति और पुरुष का साहचर्य दिखाती ये पंक्तियां
बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज।
मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र कें राज॥23॥
प्रकृति पूज्य है पुरुष पूजक है
पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता॥
यद्यपि घर में बहुत से दास दासियाँ हैं और वे सब सेवा की विधि में कुशल हैं, फिर भी सीता जी घर की सब सेवा अपने ही हाथों से ही करती हैं और श्री राम की आज्ञा का अनुसरण करती हैं
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