प्रस्तुत है विवर्ण -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
फाल्गुन शुक्ल दशमी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 01-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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580 वां सार -संक्षेप
1 विवर्ण =दुष्ट
हम आत्मस्थ होकर इन सदाचार संप्रेषणों को सुनें तो इनसे हमें बहुत लाभ होगा
अध्यात्म रामायण में एक वक्ता शिव जी और एक श्रोता पार्वती जी हैं जब कि मानस में चार वक्ता और चार श्रोता हैं
अध्यात्म रामायण में एक प्रसंग है
दशरथ जी राम जी से कहते हैं मैं वरदान से बंधा हूं तुम मुझे बन्दी बना लो इससे मेरी प्रतिज्ञा भंग भी नहीं होगी और तुमको वनवास भी नहीं करना होगा
स॑स्कॖत काव्य शास्त्र के एक महान आचार्य आo विश्वनाथ के ' साहित्य दर्पण ' ग्रंथ " के अनुसार
रसात्मक॑ वाक्य॑ काव्यम् रसात्मक वाक्य ही काव्य होता है
हम लोग संघर्षों के साथ रसात्मकता भी अपने जीवन में लाएं
रामचरित मानस में यह रसात्मकता बहुत है जिसके उत्तर कांड में आजकल हम लोग प्रविष्ट हैं
अन्य से तुलना करें तो
तुलसीदास जी की कथा बहुत मोहक है
मानस में ऐसे बहुत से प्रसंग हैं जो अश्रुपात करा देते हैं अश्रु इसलिये आते हैं क्योंकि केवल वाणी से ही भाव व्यक्त नहीं हो पाते
लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ।
कैकइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ॥6 ख॥
लक्ष्मणजी तीनों माताओं से मिले और आशीर्वाद पाकर खुश हुए। वे कैकेयी मां से बार-बार मिले, परंतु उनके मन का क्षोभ नहीं जाता था कि मां मेरे मुख से ऐसा गलत निकल गया
सासुन्ह सबनि मिली बैदेही । चरनन्हि लाग हरषु अति तेही॥
देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता॥1॥
सीता जी सब माताओं से मिलीं और उनके चरणों में लगकर उन्हें अत्यंत खुशी हुई । माताएं कुशल पूछकर आशीष दे रही हैं कि तुम्हारा सुहाग अचल हो
कैकेयी कैसा अनुभव कर रही होंगी
आचार्य जी ने अध्यात्म रामायण का वह प्रसंग बताया जब कैकेयी सीता जी को वल्कल वस्त्र देती हैं तो वशिष्ठ जी डांटते हैं
हृदयँ बिचारति बारहिं बारा। कवन भाँति लंकापति मारा॥
माताएं तब गर्व से अभिभूत हो जाती हैं जब वे देखती हैं कि मेरा पुत्र केवल सुन्दर ही नहीं वीर पराक्रमी शक्तिसम्पन्न और विवेकी भी है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रानी दुर्गावती की मूर्ति स्थापना के सम्बन्ध में बताया
भारतवर्ष की संस्कृति के द्वार पर खड़े होने के लिए हमें क्या करना होगा आइये सुनें यह संप्रेषण