किमुक्त्वाबहुधाचापिसर्वथाविजयीभवान् ।
निमित्तानिचपश्यामिमनोमेसम्प्रहृष्यति ।।6.2.25।।
प्रस्तुत है संस्कृत ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
फाल्गुन शुक्ल एकादशी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 02-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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581वां सार -संक्षेप
1 =विद्वान्
भारतवर्ष की धरती में कुछ ऐसा आकर्षण है कि कुछ लोग इसे आशाभरी नजर से कुछ लोग लालचभरी नजर से देखते हैं कुछ ऐसे भी हैं जो विकृत नजरों से देखते हैं
यहां आकर्षण के लिये बहुत कुछ है
हमारी संस्कृति का स्वर है
वयम् अमृतस्य पुत्राः
हम कहते हैं
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
इसलिये हम संकट के क्षणिक अवरोध को अत्यन्त उत्साह के साथ समाप्त करने के लिये सदा उद्यत रहते हैं
शरीरों को शरीरी की सदा अनुभूति जब रहती,
सुमंगल गान गाती प्राण की भागीरथी बहती,
मनों में शौर्य का शृंगार मय उत्सव रचा रहता,
मरणधर्मा जगत में भी अमर स्वर-सुख बचा रहता ।।
हमें यही सिखाया गया है कि हमारा कर्म में तो मन लगे लेकिन उसके फल की इच्छा हम न करें
हम संघर्षों में समाधान खोजते हैं
इस धरती पर जन्मे ऐसे महापुरुषों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने अपना लक्ष्य बनाया कि हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक हमारा समाज हमारा परिवेश आनन्दमय नहीं होगा
अन्तःकरण के सुख के लिये रामकथा रचने वाले
तुलसीदास जी भी ऐसे ही महापुरुष थे जिनमें समाज को जाग्रत करने की चाह थी
आइये उसी रामकथा
जिसे पढ़कर हमें विश्वास से भर जाना चाहिये कि हमारा देश अमरत्व की उपासना करने वाला देश है
के उत्तरकांड में प्रवेश करते हैं
लंकापति कपीस नल नीला। जामवंत अंगद सुभसीला॥
हनुमदादि सब बानर बीरा। धरे मनोहर मनुज सरीरा॥1॥
भरत सनेह सील ब्रत नेमा। सादर सब बरनहिं अति प्रेमा॥
देखि नगरबासिन्ह कै रीती। सकल सराहहिं प्रभु पद प्रीती॥2॥
वे सब लोग भरत जी के प्रेम त्याग आदि की आदरपूर्वक बड़ाई कर रहे हैं और नगरवासियों की प्रेम, शील और विनय से परिपूर्ण रीति देखकर प्रभु के चरणों में उनके प्रेम की सराहना कर रहे है
अयोध्या स्वर्ग से भी महान है
फिर भगवान राम ने सब साथियों को बुलाया और कहा कि मुनि के चरणों में लगो। ये गुरु वशिष्ठ जी हमारे पूज्य हैं जिनकी कृपा से राक्षस मारे गए हैं
यह रामत्व है
कि गुरुदेव को भी उन सखाओं का परिचय दिया जिन्होंने अपनी जान की भी परवाह नहीं की थी