प्रस्तुत है ज्ञान -अम्बुभृत् ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
फाल्गुन शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 03-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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582 वां सार -संक्षेप
1 अम्बुभृत् =समुद्र
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।
जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥
ये छंदों के रूप में व्यक्त अद्भुत भाव हैं और यह कवित्व सबको प्राप्त नहीं होता लेकिन हम सौभाग्यशाली हैं कि इस भारतवर्ष की धरती पर जन्मे हैं यहां तो ऐसे कवित्व को प्राप्त कवियों की बहुत लम्बी सूची है
सूर्य की तरह प्रकाश बिखेरने वाले ये कवि हमारे मार्गदर्शक हैं जो
हमें अंधकार में भटकने से बचाते हैं
रोम रोम में रमे परमात्मा राम की कथा कहने वाले अनेक ऋषियों मनीषियों कवियों ने भी यही प्रयास किया है कि किस प्रकार भगवान् राम, जिनके सामने तो विकट समस्याएं आईं, से प्रेरणा लेकर हम अपने पौरुष को जाग्रत कर सकते हैं समस्याओं के समाधान के लिए निर्भय होकर जूझते रह सकते हैं
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः के भाव के साथ शौर्य की उपासना हमारा उद्देश्य है
आइये चलते हैं इन्हीं भावों को धारण करते हुए तुलसीदास जी की अत्यन्त मोहक रामकथा में
उत्तर कांड में आगे
अयोध्या में सबको सबके अनुकूल सम्मान मिल रहा है प्रेम आत्मीयता से लबरेज वातावरण है
कौसल्या के चरनन्हि पुनि तिन्ह नायउ माथ।
आसिष दीन्हे हरषि तुम्ह प्रिय मम जिमि रघुनाथ॥8 क॥
फिर नल नील विभीषण सुग्रीव आदि ने मां कौशल्या के चरणों में मस्तक नवाए। मां जी ने हर्षित होकर आशीषें दीं और कहा तुम मुझे राम के समान प्रिय हो क्योंकि तुम लोगों ने
राम की सुरक्षा सेवा की है
पूरे अयोध्या में हर्ष का वातावरण है हर जगह सजावट हो रही है
प्रभु जानी कैकई लजानी। प्रथम तासु गृह गए भवानी॥
ताहि प्रबोधि बहुत सुख दीन्हा। पुनि निज भवन गवन हरि कीन्हा॥1॥
सबसे पहले मां कैकेयी के घर राम जी गये
उस समय मां कैकेयी का ज्ञान जागा था जब उन्होंने राम जी को वन भेजा था क्योंकि उन्हें तो मालूम था कि प्रभु का जन्म पूरे संसार को आतंकित करने वाले रावण के साथ अन्य राक्षसों को मारने के लिये हुआ है
इस समय राम और कैकेयी का बहुत मार्मिक मिलन है
आचार्य जी ने यह भी बताया कि राम जी मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहे जाते हैं
अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं की कौन सी कविता आचार्य जी ने सुनाई जानने के लिये सुनें