कहहिं बचन मृदु बिप्र अनेका। जग अभिराम राम अभिषेका॥
अब मुनिबर बिलंब नहिं कीजै। महाराज कहँ तिलक करीजै॥4॥
प्रस्तुत है छान्दस ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 04-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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583 वां सार -संक्षेप
1 वेदज्ञ
आचार्य जी की परिस्थितियां कैसी भी हों इन सदाचार संप्रेषणों का नित्य संप्रेषण एक अत्यन्त आश्चर्य का विषय है हमारे जीवन में ये अत्यन्त उपयोगी हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिये
विषय कोई भी हो उसका अध्ययन करें उसका मनन करें और उसकी भावभूमि पर जायें तो यह हमें आनन्द प्रदान करेगा
यह सृष्टि परमात्मा की ऐसी एक संरचना है जो अनादि काल से आरंभ विलय का विषय रही है
परमात्मा बार बार विविध शरीर धारण कर कभी कृष्ण बनकर कभी राम बनकर कभी कोई अन्य बनकर सज्जनों के कष्टों का निवारण करने आये हैं और आते रहेंगे
यह सत्य है
सच वह है नहीं जिसको निजी आंखें निरखती हैं
नहीं वह है कि जिसको स्वयं की मेधा परखती है
हम स्वयं भी अवतार हैं हम स्वयं भी बड़े से बड़े काम कर सकते हैं गीता मानस ऐसे ग्रंथ हैं जो यही प्रेरणा देते हैं
आइये चलते हैं मानस के उत्तरकांड में
उस मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रामत्व का शतांश प्राप्त करने के लिये जिनका राज तिलक होने जा रहा है
उत्तरकांड ज्ञान का भण्डार है उस ज्ञान को पाने के लिये उसके प्रति हमारा आकर्षण होना चाहिये
कृपासिंधु जब मंदिर गए। पुर नर नारि सुखी सब भए॥
गुर बसिष्ट द्विज लिए बुलाई। आजु सुघरी सुदिन समुदाई।2॥
सब द्विज देहु हरषि अनुसासन। रामचंद्र बैठहिं सिंघासन॥
मुनि बसिष्ट के बचन सुहाए। सुनत सकल बिप्रन्ह अति भाए॥3॥
पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान। 9 ख॥
भगवान् राम कहते हैं अब आप लोगों को कोई चिन्ता नहीं करनी है
मुनि बसिष्ट के बचन सुहाए। सुनत सकल बिप्रन्ह अति भाए॥3॥
वशिष्ठ मुनि के सुन्दर वचन सारे ब्राह्मणों को बहुत ही अच्छे लगे
आचार्य जी ने एक बहुत रोचक प्रसंग बताया कि क्योंकि दुःखी होने के कारण कैकेयी अभी राजसिंहासन के योग्य नहीं हैं इसलिये उन्हें यह भार नहीं सौंपा जा सकता
तब राजदंड की रक्षा में रत कुश द्वारा अयोध्या की रक्षा हुई
इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिये सुनें