6.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 06-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई॥

राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई॥1॥


प्रस्तुत है बकव्रतचर -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 06-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  *585 वां* सार -संक्षेप

1 बकव्रतचर =ढोंगी



संसार के व्यवहार के साथ साथ यदि हम विकारों को दूर करने का प्रयास करते हुए वैचारिक दृष्टि  से उचित मार्ग पर चलते हैं तो सांसारिक समस्याओं का हल आसानी से हमें मिल जाता है यही आत्मनिर्भरता है

श्रीरामचरित मानस के रूप में जो मार्गदर्शक ग्रंथ हमें मिला है उसके लिए तुलसीदास जी ने बहुत सारे ग्रंथों का अध्ययन किया उनको बहुत सारी समस्याओं का सामना भी करना   पड़ा फिर भी उनके चिन्तन मनन निदिध्यासन की कोई सीमा नहीं रही 

अद्भुत कौशल था तुलसीदास जी का 

उन्हीं की तरह हम भी क्षमतावान हैं अर्थात् हम और वो एक हैं यह संबन्धों का संसार है इस संसार का निर्माण जिसने किया वो परम  पिता परमेश्वर है यह अनुभूति अध्यात्म का द्वार है

आइये उसी अध्यात्म की झलक पाने के लिये बल बुद्धि विवेक पाने के लिए प्रवेश करते हैं मानस के उत्तरकांड में


प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा॥

सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी॥3॥

हर जगह आनन्द ही आनन्द है त्रैलोक्य स्वामी भगवान् राम के दर्शन कर सब धन्य हो गये 

भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम।

बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम॥12 ख॥


सारे देवता अलग-अलग स्तुति करके अपने-अपने धाम चले गए। तब बन्दियों का रूप धारण करके चारों वेद वहाँ आए जहाँ ज्ञान के भण्डार  परमात्मा श्री रामजी थे परमात्मा से ही ज्ञान उत्पन्न हुआ है 


वेद ज्ञान है ज्ञान मूल तत्त्व है वेद मनुष्य की रचना नहीं हैं

आचार्य जी ने भक्ति का अर्थ स्पष्ट किया यह अत्यन्त तात्विक पक्ष है हम इतना समझ लें कि हम अंशी के अंश हैं रोग सांसारिकता बाह्य है विकार है विजातीय है

हम विकारों को दूर करने का प्रयास करते हैं 

साफ चादर   ही हम ओढ़ना  चाहते हैं 

आचार्य जी ने यह भी बताया कि हमारा शरीर पत्थर नहीं मिट्टी होने के कारण क्यों महत्त्वपूर्ण है