जपि नाम तव बिनु श्रम तरहिं भव नाथ सो समरामहे॥3॥
दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥
रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥
प्रस्तुत है धूर्तकृत् -रिपु ¹आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 08-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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587वां सार -संक्षेप
1 धूर्तकृत् =मक्कार
आजकल हम लोग उत्तरकांड में प्रविष्ट हैं
वेद चारण का स्वरूप त्यागकर जब मूल स्थान पर चले गये
सब के देखत बेदन्ह बिनती कीन्हि उदार।
अंतर्धान भए पुनि गए ब्रह्म आगार॥13 क॥
तो शिवजी की स्तुति हुई है और यह अनायास ही नहीं हुआ है
गोस्वामी संत मार्गदर्शक धर्मरक्षक तुलसीदास के माध्यम से परमात्मा ने हम जीवात्माओं को एक अद्भुत संदेश दिया है इस अद्भुतता का अल्प मात्रा का संस्पर्श ही हम जीवात्माओं को आनन्दित कर देता है और फिर उनके कर्म अत्यन्त शुभ होते हैं
ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।
जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति॥15॥
वनवासी जो वास्तव में देवता ही हैं सब वास्तविक आनन्द में मग्न हैं। अव्यक्त अनादि अज प्रभु के चरणों में सबका प्रेम भाव दिख रहा है। वे जान ही नहीं पाए दिन बीतते रहे और इस प्रकार छह महीने बीत गए॥
वे अपने घर भूल ही गए। उन्हें सपने में भी घर की याद नहीं आती, जैसे संत जनों के मन में दूसरों से द्रोह करने की बात कभी नहीं आती। तब प्रभु ने सब सखाओं को बुलाया। सबने आदर सहित सिर नवाया l
भगवान् राम कहते हैं यद्यपि
घर सीता जी भाई आदि सब प्रिय हैं लेकिन तुम्हारे बराबर नहीं क्योंकि तुम लोगों का समर्पण वर्णनातीत है
अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।
सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम॥16॥
हे सखाओं
अब सब लोग घर जाओ, वहाँ दृढ़ नियम से मुझे भजते रहना। मुझे हमेशा सर्वव्यापक और सबका हित करने वाला ही जानना और अत्यधिक प्रेम करना l
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा पंकज भैया के प्रश्न के उत्तर में बताया कि
अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने।
षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने॥
की व्याख्या के लिए बहुत अधिक समय चाहिये
भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों आया जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी से कौन भेंट करना चाहता है जानने के लिये सुनें