ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।
अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच चारि निगमागम भने।
षट कंध साखा पंच बीस अनेक पर्न सुमन घने॥
फल जुगल बिधि कटु मधुर बेलि अकेलि जेहि आश्रित रहे।
पल्लवत फूलत नवल नित संसार बिटप नमामहे॥5॥
प्रस्तुत है प्रगेनिश -अरि आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज
चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2079
तदनुसार 09-03- 2023
का सदाचार संप्रेषण
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588वां सार -संक्षेप
नाना जी देशमुख ने एक ऐसे माडल पर काम किया था जिसके अनुसार देश का उत्थान गांवों से ही संभव है सिद्ध करने का प्रयास किया गया
हम भी इस दिशा में योजना बना सकते हैं
फिल्म बादल का एक गीत है
अपने लिये जिये तो क्या जिये
अपने लिये जिये तो क्या जिये
तू जी ऐ दिल ज़माने के लिये
अपने लिये जिये तो क्या जिये
नाना जी कहते थे मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं मेरे अपने वे सब हैं जो पीड़ित शोषित वंचित उपेक्षित हैं और जिनके लिए नाना जी जीवनपर्यन्त तन मन धन से समर्पित रहे
उसी तरह आचार्य जी भी अपने लिए नहीं अपनों के लिए हैं और उनके अपने वे सब हैं जो दीनदयाल विद्यालय में उनके छात्र रहे हैं
इसी लगाव का विस्तार हमें एक दूसरे से संयुत रखता है
कहा तो यह जाता है कि बिना कारण के कार्य नहीं होता लेकिन बिना कारण के भी कार्य होता है ऐसा उपनिषदों में वर्णित है
और ये सदाचार संप्रेषण तो एक उद्देश्य के लिए हैं हमें इन्हें सुनकर लाभ प्राप्त करना ही चाहिए
और हम सुनते भी हैं जिसके साथ हमें प्रेम होता है हम उसे त्यागना नहीं चाहते
आइये चलते हैं उत्तरकांड में
अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।
सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम॥16॥
इस छंद में ज्ञान और व्यवहार दोनों है भजेहु मोहि.. का अर्थ है
संगठनकर्ता पौरुष के विग्रह सनातन सत्य व्यवहार कुशल अंशी राम के
रामत्व को हम अंशों द्वारा भजना
हम भी उस रामत्व को धारण करें ऐसे सत्कर्म करें कि लोगों के हृदयों में उतर जाएं
एकटक रहे जोरि कर आगे। सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे॥1॥
भगवान राम ज्ञान दे रहे हैं इसी ज्ञान से मां कैकेयी मां कौशल्या का मोह भंग किया भरत के प्रेम को दिशा मिली विभीषण का धर्म रथ प्रसंग मंदोदरी को दिया उपदेश याद आ जाते हैं
आचार्य जी ने बताया कि भगवान् राम अंगद को क्यों भेजना चाहते हैं और हनुमान जी को क्यों रखना चाहते हैं