10.3.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2079 तदनुसार 10-03- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज।

जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज॥22॥




प्रस्तुत है प्रणाय्य¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज 

चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत्  2079

तदनुसार 10-03- 2023

का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  589 वां सार -संक्षेप

1=ईमानदार



ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी हैं इनसे हम प्रेरित होकर चिन्तन मनन स्वाध्याय अध्ययन द्वारा हम बहुत से कठिन विषय भी समझ सकते हैं


संसार को समझने की शक्ति प्राप्त करने के बाद हम संसार के आदि का रहस्य भी जान सकने में समर्थ हो सकते हैं


बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग॥20॥



अध्यात्म हमें आनन्द की स्थिति में पहुंचाता है

यही शिवत्व है


ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।

जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति॥15॥


समय बीतते देर नहीं लगती भगवान् राम का राजतिलक हुए छह माह बीत गए हैं

भगवान् तो स्वयं नर का रूप धारण कर


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।


 धरती का भार उतारने आए हैं भारतवर्ष उसका केन्द्रबिन्दु है उन्होंने अपनी शक्ति बुद्धि विचार ऐश्वर्य को झोंकने के साथ अपनों का संगठन बनाकर भारतवर्ष की सुरक्षा की

इसी रामत्व को धारण करने के प्रयास के लिए संत तुलसीदास ने एक अद्भुत कृति रच दी


जिसके उत्तरकांड में आइये प्रवेश करते हैं



अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।

सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम॥16॥


अब आप लोग अपने अपने स्थान पर जाइये लेकिन आप लोग अपना कर्तव्य न भूलें 


प्रेम जब कर्तव्य में बाधा बन जाता है तो वह मोह हो जाता है

वही प्रेम जब कर्तव्य में प्रेरणा बन जाता है तो वह भक्ति हो जाती है

इस प्रकार भक्ति ज्ञान का आधार है



परम प्रेम तिन्ह कर प्रभु देखा। कहा बिबिधि बिधि ग्यान बिसेषा॥

प्रभु सन्मुख कछु कहन न पारहिं। पुनि पुनि चरन सरोज निहारहिं॥2॥



प्रभु राम ने उनका अत्यंत प्रेम देखा तो उन्हें विशेष ज्ञान का उपदेश दिया। प्रभु के सामने वे कुछ कह नहीं सकते वे बार-बार उनके चरणों को देखते हैं




लेकिन अंगद बहुत दुःखी है वह जाना नहीं चाहता है


असरन सरन बिरदु संभारी। मोहि जनि तजहु भगत हितकारी॥

मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता। जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता॥2॥


अंगद की दास्य भक्ति देख्ने लायक है


अस कहि चरन परेउ प्रभु पाही। अब जनि नाथ कहहु गृह जाही॥4॥

इस अवसर पर राम जी के नयन भीग गए

निज उर माल बसन मनि बालितनय पहिराइ।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि भाई साहब अस्वस्थ हैं

हम लोग ईश्वर से उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना करते हैं